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राहु - मेष, वृश्चिक, कुम्भ, कन्या, वृष और कर्क राशि एवं दशम स्थान में बलवान् होता है ।
केतु - मीन, वृष और धनु राशि एवं उत्पात में केतु बली होता है ।
सूर्य के साथ चन्द्रमा, लग्न से चतुर्थ भाव में बुध, पंचम में बृहस्पति, द्वितीय में मंगल, षष्ठ में शुक्र एवं सप्तम में शनि विपुल माना जाता है ।
ग्रहों की दृष्टि
सभी ग्रह अपने स्थान से तीसरे और दसवें भाव को एक चरण दृष्टि से; पाँचवें चरण दृष्टि से; चौथे और आठवें भाव को तीन चरण दृष्टि से पूर्ण दृष्टि से देखते हैं । किन्तु मंगल चौथे और आठवें भाव को; भाव को एवं शनि तीसरे और दसवें भाव को भी पूर्ण दृष्टि से
और नवें भाव को दो एवं सातवें भाव को गुरु पाँचवें और नवें देखते हैं ।
ग्रहों के उच्च और मूलत्रिकोण का विचार
मंगल का
सूर्य का मेष के १० अंश पर, चन्द्रमा का वृष के ३ अंश पर, मकर के २८ अंश पर, बुध का कन्या के १५ अंश पर, बृहस्पति का कर्क के ५ अंश पर, शुक्र का मीन के २७ अंश पर और शनि का तुला के २० अंश पर परमोच्च होता है । प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से सप्तम राशि में इन्हीं अंशों पर नीच का होता है । राहु वृष राशि में उच्च और वृश्चिक राशि में नीच एवं केतु वृश्चिक राशि में उच्च और वृष राशि में नीच का होता है ।
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पड़ता है, लेकिन पहले लिखा गया
उच्च ग्रह की अपेक्षा मूलत्रिकोण में ग्रहों का प्रभाव कम स्वक्षेत्री — अपनी राशि में रहने की अपेक्षा मूलत्रिकोण बली होता है । है कि सूर्य सिंह में स्वक्षेत्री है - सिंह का स्वामी है, परन्तु सिंह के १ अंश से २० अंश तक सूर्य का मूलत्रिकोणे और २१ से ३० अंश तक स्वक्षेत्र कहलाता है । जैसे किसी का जन्मकालीन सूर्य सिंह के १५वें अंश पर है तो यह मूलत्रिकोण का कहलायेगा, यदि यही सूर्य २२वें अंश पर है तो स्वक्षेत्री कहलाता है । चन्द्रमा का दृषराशि के ३ अंश तक परमोच्च है और इसी राशि के ४ अंश से ३० अंश तक मूलत्रिकोण है । मंगल का मेष के १८ अंश तक मूलत्रिकोण है, और इससे आगे स्वक्षेत्र है । बुध का कन्या के १५ अंश तक उच्च, १६ अंश से २० अंश तक मूलत्रिकोण और २१ से ३०
१. अजवृषभमृगाङ्गनाकुलीरा झषवणिजौ च दिवाकरादितुङ्गाः । दशशशिमनुयुक् तिथीन्द्रियांशैस्त्रिनवकविंशतिभिश्च तेऽस्तनीचाः ॥
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२. वर्गोत्तमाश्चरगृहादिषु पूर्वमध्यपर्यन्तगाः शुभफला नवभागसंज्ञाः ।
सिंहो वृषः प्रथमषष्ठयाङ्गतौलिकुम्भास्त्रिकोणभवनानि भवन्ति सूर्यात् ॥ वही, श्लो. १४ ॥
मारतीय ज्योतिष
- बृहज्जातक, राशिभेदाध्याय, श्लो. १३
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