________________
तृतीयाध्याय
जन्मपत्री मानव के पूर्वजन्म के संचित कर्मों का मूर्तिमान रूप है, अथवा यों कह सकते हैं कि यह पूर्वजन्म के कर्मों को जानने की कुंजी है। जिस प्रकार विशाल वटवृक्ष का समावेश उसके बीज में है, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के पूर्व जन्म-जन्मान्तरों के कृतकर्म जन्मपत्री में अंकित हैं। जो आस्तिक है, आत्मा को नित्य पदार्थ स्वीकार करते हैं, वे इस बात को मानने से इनकार नहीं कर सकते कि संचित एवं प्रारब्ध कर्मों के फल को मनुष्य अपनी जीवन-नौका में बैठकर क्रियमाणरूपी पतवार के द्वारा हेर-फेर करते हुए उपभोग करता है । अतएव जन्मपत्री से मानव के भाग्य का ज्ञान किया जाता है। यहाँ इतना स्मरण सदा रखना होगा कि क्रियमाण कर्मों के द्वारा पूर्वोपार्जित अदृष्ट में होनाधिकता भी की जा सकती है। यह पहले भी कहा गया है कि ज्योतिष का प्रधान उपयोग अपने अदृष्ट को ज्ञात कर उसमें सुधार करना है। यदि हम अपने भाग्य को पहले से जान जायें तो सजग हो उस भाग्य को पलट भी सकते हैं। परन्तु जो तीव्र अदृष्ट का उदय होता है, वह टाला नहीं जा सकता; उसका फल अवश्य भोगना पड़ता है। अतएव जो आज साधारण जनता में मिथ्या विश्वास फैला हुआ है कि ज्योतिष में अमुक व्यक्ति का भाग्य अमुक प्रकार का बताया गया है, अतएव अमुक व्यक्ति अमुक प्रकार का होगा ही, यह ग़लत है। यदि क्रियमाण का पलड़ा भारी हो गया तो संचित अदृष्ट अपना फल देने में असमर्थ रहेगा। हां, क्रियमाण यथार्थ रूप में सम्पन्न न किया जाये तो पूर्वोपार्जित अदृष्ट का फल भोगना ही पड़ता है, इसलिए जन्मपत्री में ज्योतिषी द्वारा जिस प्रकार का फलादेश बताया जाता है, वह ठीक घट भी सकता है और अन्यथा भी हो सकता है। फिर भी जीवन को उन्नतिशील बनाने एवं क्रियमाण द्वारा अपने भविष्य को सुधारने के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता है। जन्मपत्री के फलादेश को अवगत करने के लिए प्रथम ग्रह और उनके सम्बन्ध में निम्न आवश्यक बातें जान लेनी चाहिए। भाव, राशि और ग्रह की स्थिति को देखकर फल का वर्णन करना एवं ग्रहों का स्वरूप ज्ञात कर उनके सम्बन्ध में फल अवगत करना चाहिए।
सूर्य-पूर्व दिशा का स्वामी, पुरुष, रक्तवर्ण, पित्त प्रकृति और पाप ग्रह है। सूर्य आत्मा, स्वभाव, आरोग्यता, राज्य और देवालय का सूचक तथा पितृकारक है। पिता के सम्बन्ध में सूर्य से विचार किया जाता है। नेत्र, कलेजा, मेरुदण्ड और स्नायु तृतीयाध्याय
३२
२४९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org