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आदि अवयवों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है । यह लग्न से सप्तम स्थान में बली माना गया है। मकर से छह राशि पर्यन्त चेष्टाबली है । इससे शारीरिक रोग, सिरदर्द, अपचन, क्षय, महाज्वर, अतिसार, मन्दाग्नि, नेत्रविकार, मानसिक रोग, उदासीनता, खेद, अपमान एवं कलह आदि का विचार किया जाता है ।
चन्द्रमा - पश्चिमोत्तर दिशा का स्वामी, स्त्री, श्वेतवर्ण और जलग्रह है । वातश्लेष्मा इसकी धातु और यह रक्त का स्वामी है। माता-पिता, चित्तवृत्ति, शारीरिक पुष्टि, राजानुग्रह, सम्पत्ति और चतुर्थ स्थान का कारक है । चतुर्थ स्थान में चन्द्रमा बली और मकर से छह राशि में इसका चेष्टाबल होता है । इससे शारीरिक रोग, पाण्डुरोग, जलज तथा कफज रोग, पीनस, मूत्रकृच्छ, स्त्रीजन्य रोग, मानसिक रोग, व्यर्थ भ्रमण, उदर एवं मस्तिष्क का विचार किया जाता है । कृष्णपक्ष की षष्ठी से शुक्लपक्ष की दशमी तक क्षीण चन्द्रमा रहने के कारण पाप ग्रह और शुक्लपक्ष की दशमी से कृष्णपक्ष की पंचमी तक पूर्ण ज्योति रहने से शुभ ग्रह और बली माना जाता है । बली चन्द्रमा ही चतुर्थ भाव में अपना पूर्ण फल देता है । मंगल - दक्षिण दिशा का स्वामी, पुरुष जाति, पित्त प्रकृति, रक्तवर्ण और अग्नि तत्त्व है । यह स्वभावतः पाप ग्रह है, धैर्य तथा पराक्रम का स्वामी है । तीसरे और छठे स्थान में बली और द्वितीय स्थान में निष्फल होता है । दशम स्थान में दिग्बली और चन्द्रमा के साथ रहने से चेष्टाबली होता है । यह भ्रातृ और भगिनी कारक है ।
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बुध - उत्तर दिशा का स्वामी, नपुंसक, त्रिदोष प्रकृति, श्यामवर्ण और पृथ्वी तत्त्व है । यह पाप ग्रहों के-सू. मं. रा. के. शनि के साथ रहने से अशुभ और शुभ ग्रहों - पूर्ण चन्द्रमा, गुरु, शुक्र के साथ रहने से शुभ फलदायक होता है । यह ज्योतिष विद्या, चिकित्सा शास्त्र, शिल्प, क़ानून, वाणिज्य और चतुर्थ तथा दशम स्थान का कारक है । चतुर्थ स्थान में रहने से निष्फल होता है, इससे जिह्वा और तालु आदि उच्चारण के अवयवों का विचार किया जाता है। इससे वाणी, गुह्यरोग, संग्रहणी, बुद्धिभ्रम, मूक, आलस्य, वातरोग एवं श्वेतकुष्ठ आदि का विचार विशेष रूप से होता है ।
गुरु- पूर्वोत्तर दिशा का स्वामी, पुरुष जाति, पीतवर्ण और आकाश तत्त्व है । यह लग्न में बली और चन्द्रमा के साथ रहने से चेष्टाबली होता है । यह चर्बी और कफ धातु की वृद्धि करनेवाला है । इससे पुत्र, पौत्र, विद्या, गृह, गुल्म एवं सूजन (शोथ ) आदि रोगों का विचार किया जाता है ।
शुक्र -दक्षिण पूर्व का स्वामी, स्त्रीजाति, श्याम - गौर वर्ण एवं कार्य-कुशल है । इस ग्रह के प्रभाव से जातक का रंग गेहुँआ होता है । छठे स्थान में यह निष्फल एवं सातवें में अनिष्टकर होता है । यह जलग्रह है, इसलिए कफ, वीर्य आदि धातुओं का कारक माना गया है । मदनेच्छा, गानविद्या, काव्य, पुष्प, आभरण, नेत्र, वाहन, शय्या,
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भारतीय ज्योतिष
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