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ग्रहों का चेष्टाकेन्द्र होता है । चेष्टाकेन्द्र ६ राशि से अधिक हो तो उसे १२ राशि में से घटाकर शेष अंशादि को दूना कर ६ का भाग देने पर कला-विकलादि रूप मध्यम चेष्टाबल होता है ।
सूर्य का अयनबल और चन्द्रमा का पक्षबल ही मध्यम चेष्टाबल होता है ।
सभी ग्रहों के अयनबल और मध्यम चेष्टाबल को जोड़ देने पर स्पष्ट चेष्टाबल
होता है ।
मध्यम ग्रह बनाने का नियम
मध्यम ग्रह - साधन ग्रह - लाघव, सर्वानन्दकरण, केतकी, करणकुतूहल आदि करण ग्रन्थों द्वारा अहर्गण साधन कर करना चाहिए । इस प्रकरण में ग्रह लाघव द्वारा मध्यम ग्रह साधन करने की विधि दी जाती है ।
अहर्गण बनाने का नियम - इष्ट शक संख्या में से १४४२ घटाकर शेष में ११ का भाग देने से लब्धि चक्र संज्ञक होती है । शेष को १२ से गुणा कर उससे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से गतमास संख्या जोड़कर दो स्थानों में स्थापित करना चाहिए। प्रथम स्थान की राशि में द्विगुणित चक्र और दस जोड़कर ३३ का भाग देने से लब्धि तुल्य अधिमास होते हैं । इन्हें द्वितीय स्थान की राशि में जोड़कर ३० से गुणा कर वर्तमान मास की शुक्ल प्रतिपदा से लेकर गत तिथि तथा चक्र का षष्ठांश जोड़कर इस संख्या
को दो स्थानों में स्थापित कर देना चाहिए । प्रथम स्थान में लब्ध दिन आते हैं । इन्हें द्वितीय स्थान की राशि में घटाने से अहर्गण होता है
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उदाहरण - शक १८६६ वैशाख कृष्ण २ का जन्म है । १४४२ को घटाया
६ × १२ = ७२+०= ७२
७२
७६
१०
३३ ) १५८ ( ४ अधि.
४२४ ÷ ११ = ३८, शेष ६,
२३०२ ÷ ६४ = ३५, शेष ६२
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३८ चक्र
३८२ = ७६ ७२+४=७६X ३० = २२८० + १६
६४ का भाग देने से शेष इष्ट-दिनकालिक
२२९६ + ६ = २३०२ इसे दो स्थानों में स्थापित किया
२३०२ लब्ध ३५ दिन २२६७ अहर्गण
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भारतीय ज्योतिष
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