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__ मध्यम सूर्य, शुक्र और बुध की साधन विधि-अहर्गण में ७० का भाग देकर लब्ध अंशादि फल को अहर्गण में ही घटाने से शेष अंशादि रहता है, इसमें अहर्गण का १५वाँ भाग कलादि फल को घटाने से सूर्य, बुध और शुक्र अंशादिक होते हैं ।
मध्यम चन्द्र साधन-अहर्गण को १४ से गुणा करके जो गुणनफल हो उसमें उसी का १७वां भाग अंशादि घटाने से जो शेष रहे उसमें से अहर्गण का १४०वाँ भाग कलादि घटाने से शेष अंशादिक मध्यम चन्द्र होता है ।
मध्यम मंगल साधन-अहर्गण को १० से गुणा कर दो जगह रखना चाहिए । प्रथम स्थान में १९ का भाग देने से अंशादि और दूसरे स्थान में ७३ का भाग देने से कलादि फल होता है । इन दोनों का अन्तर करने से अंशादि मंगल होता है ।
मध्यम गुरु साधन-अहर्गण में १२ का भाग देकर अंशादि फल में अहर्गण के ७०वें भाग कलादि फल को घटाने से अंशादिक गुरु होता है ।
मध्यम शनि साधन-अहर्गण में ३० का भाग देकर अंशादि फल आता है। अहर्गण में १५६ का भाग देने से कलादि फल होता है। इन दोनों फलों को जोड़ने से अंशादि शनि होता है।
मध्यम राह साधन-अहर्गण को दो स्थानों में रखकर प्रथम स्थान में १९ का भाग देने से अंशादि फल और दूसरे स्थान में ४५ का भाग देने से कलादि फल होता है । इन दोनों फलों के योग को १२ राशि में घटाने से राहु होता है और राहु में ६ राशि जोड़ने से केतु आता है ।
इस प्रकार अहर्गणोत्पन्न जो ग्रह आवें उनमें चक्र गुणित अपने ध्रुवक को घटाने से और अपने क्षेपक को जोड़ने से सूर्योदयकालिक मध्यम ग्रह होते हैं। चन्द्रसाधन के लिए स्वदेश और स्वरेखादेश के अन्तर योजन में ६ का भाग देने से लब्ध कलादि फल को पश्चिम देश में चन्द्रमा में जोड़ने से और पूर्व देश में चन्द्रमा में घटाने से वास्तविक मध्यम चन्द्रमा स्वदेशीय होता है ।
ध्रुवक चक्र
भा.
बु.
शु.
३
३
| २६ | १४
२
२५ ३२
राशि
अंश ५० कला .
' विकला
२७
०
द्वितीयाध्याय
२३९
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