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जन्मकुण्डली चक्र
चन्द्रकुण्डली चक्र ० राम..
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द्वादश भाव स्पष्ट करने की विधि
भाव स्पष्ट करने के लिए प्रथम दशम भाव का साधन किया जाता है। इस भाव का गणित करने के लिए नतकाल जानने की आवश्यकता होती है, क्योंकि दशम भाव की साधनिका के लिए नतकाल ही इष्टकाल होता है। नतकाल ज्ञात करने के निम्न चार प्रकार हैं
१-दिनार्ध से पहले का इष्टकाल हो तो इष्टकाल को दिनार्ध में से घटाने से पूर्वनत होता है।
२-दिनार्ध के बाद का इष्टकाल हो तो दिनमान में से इष्टकाल घटाकर जो अवशेष बचे, उसको दिनार्ध में घटाने से पश्चिमनत होता है ।।
३-रात्रि अर्ध से पहले का इष्टकाल हो तो दिनमान को इष्टकाल में घटाने से जो शेष आवे उसमें दिनार्ध जोड़ने से पश्चिमनत होता है । १. पूर्व नतं स्याद्दिनरात्रिखण्डं दिवानिशोरिष्टघटीविहीनम् ।
दिवानिशोरिष्टघटीषु शुद्धं धुरात्रिखण्डं त्वपरं नतं स्यात् ॥ तत्काले सायनार्कस्य भुक्तभोग्यांशसंगुणात् । स्वोदयात्खाग्नि ३० लब्धं यद् भुक्तं भोग्यं रवेस्त्यजेत् । इष्टनाडीपलेभ्यश्च गतगम्यान्निजोदयात् । शेष खत्र्या ३० हतं भक्तमशुद्धेन लवादिकम् ॥ अशुद्धशुद्धमे हीनं युक्तनुर्व्ययनाशकम् । एवं लबोदयैर्भुक्तं भोग्यं शोध्यं पलीकृतात् ॥ पूर्वपश्चान्नतादन्यत्प्राग्वत्तद्दशमं भवेत् । सषटकलग्नखे जायातुयौं लग्नोनतुर्यतः ॥ अग्रे त्रयः षडेवं ते मार्द्धयुक्ताः परेऽपि षट् । खेटे भावसमं पूर्ण फलं सन्धिसमे तु खम् ॥ षष्ठोशयुक्तनुः सन्धिरग्रे षष्ठांशयोजनात् । त्रयः ससन्धयो भावाः षष्ठांशो नैकयुक्सुखात् ॥ - ताजिकनीलकण्ठी, बनारस सं. १९९६, संज्ञातन्त्र, अ. १, श्लो. २००२६
मारतीय ज्योतिष
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