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________________ करने की योग्यता प्राप्त हो गयी थी। लेकिन थोड़े ही दिनों में इन्हें ज्ञात हुआ कि जिस ग्रह या नक्षत्र को गणनानुसार जिस स्थान पर होना चाहिए, वह उस स्थान पर नहीं है, अतएव इन्होंने नियमित रूप से आकाश का अवलोकन करना आरम्भ किया। इस कार्य के लिए यन्त्रों की आवश्यकता थी, पर यन्त्र मिलना असम्भव था। इसलिए इन्होंने प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर कुछ यन्त्र बनाये। यद्यपि ये यन्त्र अनगढ़ और स्थूल थे, किन्तु यह अपनी प्रतिभा के बल पर इनसे सूक्ष्म काम कर लेते थे। वेध द्वारा ग्रहों को निश्चित कर इन्होंने 'सिद्धान्त-दर्पण' नामक ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ बनाया है। इस ग्रन्थ को देखकर इनके ज्योतिष ज्ञान की जितनी प्रशंसा की जाये, थोड़ी है। सुधाकर द्विवेदी-इनका जन्म काशी में ईसवी सन् १८६० में हुआ था । यह ज्योतिष ज्ञान के सिवा अन्य विषयों के भी अद्वितीय विद्वान् थे। फ्रेंच, अँगरेजी, मराठी, हिन्दी आदि विभिन्न भाषाओं के साहित्य के ज्ञाता थे। वर्तमान ज्योतिषशास्त्र के ये उद्धारक हैं। इन्होंने प्राचीन जटिल गणित ज्योतिष-विषयक ग्रन्थों को भाष्य, उपपत्ति, टीका आदि लिखकर प्रकाशित किया। चलनकलन, दीर्घवृत्त, गणकतरंगिणी, प्रतिभाबोधक, पंचसिद्धान्तिका की टीका, सूर्यसिद्धान्त की सुधावर्षिणी टीका, ग्रहलाघव की उपपत्ति, ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त का तिलक इत्यादि अनेक रचनाएँ इनकी मिलती हैं। बृहत्संहिता का संशोधन कर प्रामाणिक संस्करण इन्होंने प्रकाशित कराया था। इस काल में प्राचीन ज्योतिषशास्त्र का उद्धार करनेवाला सुधाकर जी-जैसा अन्य नहीं हुआ है । इनकी प्रतिभा सर्वतोमुखी थी। इन उपर्युक्त प्रसिद्ध ज्योतिर्विदों के अतिरिक्त इस युग में रंगनाथ, शंकरदैवज्ञ, शिवलाल पाठक, परमानन्द पाठक, लक्ष्मीपति, बबुआ ज्योतिषी, मथुरानाथ शुक्ल, परमसुखोपाध्याय, बालकृष्ण ज्योतिषी, कृष्णदेव, शिवदैवज्ञ, दुर्गाशंकर पाठक, गोविन्दाचारी, जयराम ज्योतिषी, सेवाराम शर्मा, लज्जाशंकर शर्मा, नन्दलाल शर्मा, देवकृष्ण शर्मा, गोविन्ददेव शास्त्री, केतक, दुर्गाप्रसाद द्विवेदी, रामयत्न ओझा, मानसागर, विनयकुशल, हीरकलश, मेघराज, सूरचन्द्र, जयविजय, जयरत्न, जिनपाल, जिनदत्तसूरि, श्यामाचरण ओझा, हृषीकेश उपाध्याय आदि अन्य लब्धप्रतिष्ठ ज्योतिषी हुए हैं। इन्होंने भी अनेक प्रकार से ज्योतिषशास्त्र की अभिवृद्धि में सहायता प्रदान की है। वर्तमान ज्योतिषियों में श्रीरामव्यास पाण्डेय, सूर्यनारायण व्यास, श्रीनिवास पाठक, विन्ध्येश्वरीप्रसाद आदि उल्लेखनीय हैं। मिथिला में अनेक अच्छे ज्योतिर्विद् हुए हैं। पद्मभूषण पं. विष्णुकान्त झा ज्योतिष के अच्छे विद्वान् हैं। संस्कृत भाषा में कविता भी करते हैं । देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद का जीवनवृत्त संस्कृत पद्यों में लिखा है। वर्तमान में पटना में आपका ज्योतिष-कार्यालय भी है। समीक्षा ___ यदि समग्र भारतीय ज्योतिष शास्त्र के इतिहास पर दृष्टिपात किया जाये तो अवगत होगा कि प्राचीन काल में भारत सभ्यता और संस्कृति में कितना आगे बढ़ा प्रथमाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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