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________________ हुआ था। प्राचीन ऋषियों ने अपने दिव्यज्ञान और योगजन्य शक्ति से ग्रह और नक्षत्रों के सम्बन्ध में सब कुछ जान लिया था। वे आँखों से राशि, नक्षत्र, ताराव्यूह, चन्द्र, सूर्य और मंगलादि ग्रहों की गति, स्थिति और संचार आदि को देखकर योग के बल से अपने शरीरस्थित सौरमण्डल से तुलना कर आन्तरिक ग्रहों की गति, स्थिति तथा उसके द्वारा होनेवाले फलाफल का निरूपण करते रहे। ज्योतिष का पूर्ण ज्ञान उन्हें वैदिक काल में ही था, पर उसको अभिव्यक्ति साहित्य के रूप में क्रमशः हुई है । पृथ्वी की आकर्षण-शक्ति के विषय में भारतीयों ने न्यूटन और गैलेलिओ से सैकड़ों वर्ष पहले ज्ञात कर लिया था। भास्कराचार्य ने 'सिद्धान्तशिरोमणि' के गोलाध्याय में कहा है आकृष्टशक्तिश्च महीतया यत् स्वस्थं गुरुं स्वामिमुखं स्वशक्त्या। भाकृष्यते तत्पततीति माति समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे ॥ अर्थात्-पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है; इससे वह अपने आसपास के पदार्थों को खींचा करती है। पृथ्वी के समीप में आकर्षण-शक्ति अधिक होती है और जिस प्रकार दूरी बढ़ती जाती है, वैसे ही वह घटती जाती है। भास्कराचार्य ने इसके कारण का विवेचन करते हुए लिखा है कि किसी स्थान पर भारी और हलकी वस्तु पृथ्वी पर छोड़ी जाये तो दोनों समान काल में पृथ्वी पर गिरेंगी; यह न होगा कि भारी वस्तु पहले गिरे और हलकी बाद को। अतएव ग्रह और पृथ्वी आकर्षण शक्ति के प्रभाव से भ्रमण करते हैं। पृथ्वी की गोलाई का कथन करते हुए प्राचीन आचार्यों ने लिखा है कि गोले की परिधि का १००वा भाग समतल दिखाई पड़ता है, पृथ्वी एक बहुत बड़ा गोला है तथा मनुष्य बहुत ही छोटा है, अतः उसकी पीठ पर स्थित उसे वह सम-चपटी जान पड़ती है। यह एक आश्चर्य की बात है कि भारतीय ऋषि-महर्षि दूरबीन के बिना केवल अपनी आंखों से देखकर ही आकाश की सारी स्थिति को जान गये थे। फलितज्योतिष का अनुभव उन्होंने अपने दिव्य ज्ञान से किया। यद्यपि बेबिलोनिया और यूनान के सम्पर्क से फलित और गणित दोनों ही प्रकार के भारतीय ज्योतिष में अनेक नयी बातों का समावेश हुआ, परन्तु मूलतत्त्व ज्यों के त्यों अविकृत रहे। ताजिकपद्धति का श्रीगणेश यवनों के कारण ही हुआ है । ___ अर्वाचीन ज्योतिष में जो शिथिलता आयी है, उसका कारण दिव्य ज्ञानवाले ऋषियों की कमी है। आज हमारे देश में न तो बड़ी-बड़ी वेधशालाएँ हैं और न योगक्रिया के जानकार ऋषि-महर्षि ही। इसलिए नवीन विवृत्तियां ज्योतिष में नहीं हो रही हैं। भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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