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ऊपर वार्तिक नाम की टीका लिखी है। वि. सं. १७६२ में जन्मकुण्डली विषय को लेकर 'यशोराजपद्धति' नामक एक व्यवहारोपयोगी ग्रन्थ लिखा है। यह ग्रन्थ जन्मकुण्डली की रचना के नियमों के सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डालता है, उत्तरार्द्ध में जातकपद्धति के अनुसार संक्षिप्त फल बतलाया है।
जगन्नाथ सम्राट-यह तैलंग ब्राह्मण, जयपुरनरेश जयसिंह महाराज के सभापण्डित थे। इन्होंने महाराज जयसिंह की आज्ञा से अरबी भाषा में लिखित 'इजास्ती' नामक ज्योतिष ग्रन्थ का संस्कृत में अनुवाद किया है। इसके अतिरिक्त युक्लेद के रेखागणित का भी अरबी से संस्कृत में अनुवाद किया है । इस रेखागणित में १५ अध्याय हैं। रेखागणित के अनुवाद का समय शक सं. १६४० है। कुछ लोगों का कहना है कि रेखागणित के मूल रचयिता युक्लेद नहीं थे, किन्तु मिलिटस नगर निवासी थेलस हैं । रेखागणित के पहले अध्याय में ४८, दूसरे में १४, तीसरे में ३७, चौथे में १६, पांचवें में २५, छठे में ३३, सातवें में ३९, आठवें में २५, नौवें में ३८, दसवें में १०९, ग्यारहवें में ४१, बारहवें में १५, तेरहवें में २१, चौदहवें में १० और पन्द्रहवें में ६ क्षेत्र हैं। इसमें प्रतिज्ञा या साध्य शब्द के स्थान पर क्षेत्र शब्द का प्रयोग किया गया है।
बापूदेव शास्त्रो-इनका जन्म ईसवी सन् १८२१ में पूना नगर में हुआ था। इनके पिता का नाम सीताराम था। भारतीय ज्योतिष और यूरोपियन गणित इन दोनों के यह अद्वितीय विद्वान् थे । वर्तमान में नवीन गणित की जागृति के मूल कारण शास्त्री जी हैं। इनके त्रिकोणमिति, बीजगणित और अव्यक्त गणित ये तीन ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। शास्त्री जी ने अनेक वर्षों तक गवर्नमेण्ट संस्कृत कॉलेज में अध्यापकी की
और सैकड़ों देश-देशान्तर के शिष्यों को विद्यादान देकर अपनी कीर्तिरूपी चन्द्रिका का विस्तार किया। सिद्धान्त-शिरोमणि के संशोधन के बाद शास्त्री जी का नाम 'संशोधक' प्रसिद्ध हो गया। वास्तव में यह थे भी सच्चे संशोधक । गणितविषयक यूरोप के उच्च सिद्धान्तों का भारतीय सिद्धान्तों के साथ इन्होंने बहुत कुछ सामंजस्य किया है। ईसवी सन् १८९० में इनका स्वर्गवास हो गया।
नीलाम्बर झा-ईसवी सन् १८२३ में प्रतिष्ठित और विद्वान् मैथिल ब्राह्मणकुल में आपका जन्म हुआ था। यह पटना के निवासी और अलवर के राजा श्री शिवदाससिंह के आश्रित थे। इन्होंने क्षेत्रमिति के आधार पर 'गोलप्रकाश' नामक ग्रन्थ बनाया है। इस ग्रन्थ में प्राचीन सिद्धान्तों के अनेक प्रकार, उपपत्ति और बहुत-से प्रश्नों के उत्तर बड़ी उत्तमता और नवीन रीति से दिखलाये हैं। वास्तव में इस ग्रन्थ से इनकी ज्योतिष-विषयक प्रगाढ़ विद्वत्ता प्रकट होती है।
सामन्त चन्द्रशेखर-इनका जन्म उड़ीसा के अन्तर्गत कटक से २५ कोस खण्डद्वारा राज्य में सन् १८३५ में हुआ था। यह व्याकरण, स्मृति, पुराण, न्याय, काव्य और ज्योतिष के मर्मज्ञ विद्वान् थे। पन्द्रह वर्ष की अवस्था में इनको ज्योतिष गणना
भारतीय ज्योतिष
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