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जाये तो इस गणित में संस्कार की आवश्यकता प्रतीत होगी। इसके गणित द्वारा आगत ग्रहों में दृग्गणितैक्य नहीं होगा। गणित साठ सौ गणित का ग्रन्थ है।
मेघविजयगणि—यह ज्योतिषशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् थे। इनका समय वि. सं. १७३७ के आसपास माना जाता है। इनके द्वारा रचित मेघमहोदय या वर्षप्रबोध, उदयदीपिका, रमलशास्त्र और हस्तसंजीवन आदि मुख्य हैं। वर्षप्रबोध में १३ अधिकार और ३५ प्रकरण हैं। इसमें उत्पातप्रकरण, कर्पूरचक्र, पद्मिनीचक्र, मण्डलप्रकरण, सूर्य और चन्द्रग्रहण का फल, प्रत्येक महीने का वायु-विचार, संवत्सर का फल, ग्रहों के राशियों पर उदयास्त और वक्री होने का फल, अयन-मास-पक्ष-विचार, संक्रान्तिफल, वर्ष के राजा, मन्त्री, धान्येश, रसेश आदि का निरूपण, आय-व्यय विचार, सर्वतोभद्रचक्र, शकुन आदि विषयों का सुन्दर वर्णन है। हस्तसंजीवन में तीन अधिकार हैं। प्रथम अधिकार दर्शनाधिकार है, जिसमें हाथ कैसे देखना, हाथ ही पर से मास, दिन, घटी, पल आदि का शुभाशुभ फल, रेखा और लग्नचक्र बनाकर कहना; द्वितीय अधिकार स्पर्शनाधिकार है, जिसमें हाथ को स्पर्श करने से ही समस्त शुभाशुभ फलों का निरूपण, जैसे इस वर्ष में कितनी वर्षा होगी, बिना किसी यन्त्रादिक के इस समय कितना दिन या रात गत है; इसका ज्ञान कर लेना; तृतीय विमर्शनाधिकार में रेखाओं पर से ही आयु, सन्तान, स्त्री, भाग्योदय, जीवन की प्रमुख घटनाएं, सांसारिक सुख आदि बातों का ज्ञान गवेषणापूर्ण रीति से बतलाया गया है। इनके फलित ग्रन्थों को देखने से संहिता और सामुद्रिक शास्त्र-सम्बन्धी प्रकाण्ड विद्वत्ता का पता सहज में लग जाता है।
उभयकुशल-इनका समय वि. सं. १७३७ के लगभग माना जाता है। यह फलित ज्योतिष के ज्ञाता थे, इन्होंने विवाह-पटल और चमत्कार-चिन्तामणि नामक दो ज्योतिष ग्रन्थों की रचना की है। यह मुहूर्त और जातक दोनों अंगों के ज्ञाता थे।
लब्धिचन्द्रगणियह खरतरगच्छीय कल्याण निधान के शिष्य थे। इन्होंने वि. सं. १७५१ के कार्तिक मास में ज्योतिष का जन्मपत्रीपद्धति नामक एक व्यवहारोपयोगी ग्रन्थ बनाया है। इस ग्रन्थ में इष्टकाल, भयात, भभोग, लग्न एवं नवग्रहों का स्पष्टीकरण आदि गणित के विषय भी हैं। जन्मपत्री के सामान्य फल का वर्णन भी इस ग्रन्थ में किया गया है।
बाघजी मुनि-यह पावचन्द्रगच्छीय शाखा के मुनि थे। इनका समय वि. सं. १७८३ माना जाता है। इन्होंने तिथिसारणी नामक ज्योतिष का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है। इसके अतिरिक्त इनके दो-तीन फलित ज्योतिष के भी मुहूर्त-सम्बन्धी ग्रन्थों का पता लगता है। तिथिसारणी में पंचांग बनाने की प्रक्रिया है। यह मकरन्दसारणी के समान उपयोगी है।
यशस्वतसागर-इनका दूसरा नाम जसवन्तसागर भी बताया जाता है। यह ज्योतिष, न्याय, व्याकरण और दर्शनशास्त्र के धुरन्धर विद्वान् थे। इन्होंने ग्रहलाघव के
प्रथमाध्याय
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