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________________ दिवाकर-इनके पिता का नाम नृसिंह था। इनका जन्म ईसवी सन् १६०६ में हुआ था। इन्होंने अपने चाचा शिवदैवज्ञ से ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन किया था। यह अत्यन्त प्रसिद्ध ज्योतिषी, काव्य, व्याकरण, न्याय आदि शास्त्रों में प्रवीण और अनेक ग्रन्थों के रचयिता थे। १९ वर्ष की अवस्था में इन्होंने फलित-विषयक जातकपद्धति नामक एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है । मकरन्दविवरण, केशवीय पद्धति की प्रौढ़ मनोरमा नाम की महत्त्वपूर्ण टीका और अपने द्वारा रचित पद्धतिप्रकाश के ऊपर सोदाहरण टीका भी इन्होंने रची है। कमलाकर भट्ट-यह दिवाकर के भाई थे। इन्होंने अपने भाई दिवाकर से हो ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन किया था । यह गोल और गणित दोनों ही विषयों के प्रकाण्ड विद्वान् थे। इन्होंने प्रचलित सूर्यसिद्धान्त के अनुसार 'सिद्धान्ततत्वविवेक' नामक ग्रन्थ शक सं. १५८० में काशी में बनाया है। सौरपक्ष की श्रेष्ठता परम्परागत मानकर अन्य ब्रह्मपक्ष आदि को इन्होंने नहीं माना, इसी कारण भास्कराचार्य का स्थान-स्थान पर खूब खण्डन किया है । इन्होंने तत्त्वविवेक आदि में लिखा है प्रत्यक्षागमयुक्तिशालि तदिदं शास्त्रं विहायान्यया यत्कुर्वन्ति नराधमास्तु तदसत् वेदोक्तिशून्या भृशम् ॥ कमलाकर ने ज्योतिष के अनेक सिद्धान्तों को तत्त्वविवेक में बड़ी कुशलता के साथ रखा है, यदि यह निष्पक्ष होकर इन सिद्धान्तों की समीक्षा करते तो वास्तव में 'सिद्धान्ततत्त्वविवेक' एक अद्वितीय ग्रन्थ होता । नित्यानन्द-यह इन्द्रप्रस्थपुर के निवासी गौण ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम देवदत्त था । सन् १६३९ में इन्होंने सायन गणना के अनुसार 'सिद्धान्तराज' नामक महत्त्वपूर्ण ज्योतिष का ग्रन्थ बनाया। इन्होंने चन्द्रमा को स्पष्ट करने को सुन्दर रीति बतायी है। 'सिद्धान्तराज' में मीमांसाध्याय, मध्यमाधिकार, स्पष्टाधिकार, त्रिप्रश्नाधिकार, चन्द्रग्रहणाधिकार, सूर्यग्रहणाधिकार, श्रृंगोन्नत्यधिकार, भ-ग्रहयुत्यधिकार, भ-ग्रहों के उन्नतांश-साधनाधिकार, भुवनकोश, गोलबन्धाधिकार एवं यात्राधिकार है। ग्रहगणित की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण है। महिमोदय-इनके गुरु का नाम लब्धिविजय सूरि था और इनका समय वि. सं. १७२२ बताया गया है। यह गणित और फलित दोनों प्रकार के ज्योतिष के मर्मज्ञ विद्वान् थे। इनके द्वारा रचित ज्योतिष-रत्नाकर, गणित साठ सौ, पंचांगानयनविधि ग्रन्थ कहे जाते हैं। ज्योतिषरत्नाकर ग्रन्थ फलित का है और अवशेष दोनों ग्रन्थ गणित के हैं। ज्योतिषरत्नाकर में संहिता, मुहूर्त और जातक इन तीनों ही अंगों पर प्रकाश डाला गया है। छोटा होते हुए भी ग्रन्थ उपयोगी है। पंचांगानयनविधि के नाम से ही उसका विषय प्रकट हो जाता है। इस ग्रन्थ में अनेक सारणियां हैं, जिनसे पंचांग के गणित में पर्याप्त सहायता मिलती है। यदि सूक्ष्मता की तह में प्रवेश किया मारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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