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________________ इधर अँगरेजी सभ्यता के सम्पर्क से भारत में अँगरेजी भाषा का प्रचार हो गया । इस भाषा के प्रचार के साथ-साथ अँगरेज़ी आधुनिक भूगोल और गणितविषयक विभिन्न ग्रन्थों के पठन-पाठन की प्रथा भी प्रचलित हुई। सन् १८५७ के पश्चात् तो आधुनिक नवीन आविष्कृत विद्वानों का प्रभाव भारत के ऊपर विशेष रूप से पड़ा है। फलतः अँगरेज़ी भाषा के जानकार संस्कृत के विद्वानों ने इस भाषा के नवीन गणित ग्रन्थों का अनुवाद संस्कृत में कर ज्योतिष की श्रीवृद्धि की है। बापूदेव शास्त्री और पं. सुधाकर द्विवेदी ने इस ओर विशेष प्रयत्न किया है । आप महानुभावों के प्रयास के फलस्वरूप ही रेखागणित, बीजगणित और त्रिकोणमिति के ग्रन्थों से आज का ज्योतिष धनी कहा जा सकेगा। केतक नामक विद्वान् ने केतकी ग्रह-गणित की रचना अँगरेज़ी ग्रह-गणित, और भारतीय गणित-सिद्धान्तों के समन्वय के आधार पर की है । दीर्घवृत्त, परिवलय, अतिपरिवलय इत्यादि के गणित का विकास इस नवीन सभ्यता के सम्पर्क की मुख्य देन माना जायेगा। पृथ्वी, चन्द्रमा, सूर्य, सौर-चक्र, बुध, शुक्र, मंगल, अवान्तर ग्रह, बृहस्पति, यूरेनस, नेपच्यून, नभस्तूप, आकाशगंगा और उल्का आदि का वैज्ञानिक विवेचन पश्चिमीय ज्योतिष के सम्पर्क से इधर तीस-चालीस वर्षों के बीच में विशेष रूप से हुआ है। डॉ, गोरखप्रसाद ने आधुनिक वैज्ञानिक अन्वेषणों के आधार पर इस विषय की एक विशालकाय सौरपरिवार नाम की पुस्तक लिखी है जिससे सौर-जगत् के सम्बन्ध में अनेक नवीन बातों का पता लगता है। श्री. बा. सम्पूर्णानन्द जी ने ज्योतिविनोद नामक पुस्तक में कापनिकस, जिओईनो, गैलेलिओ और केप्लर आदि पाश्चात्त्य ज्योतिषियों के अनुसार ग्रह, उपग्रह और अवान्तर ग्रहों का स्वरूप बतलाया है। श्री महावीरप्रसाद श्रीवास्तव ने सूर्य-सिद्धान्त का आधुनिक सिद्धान्तों के आधार पर विज्ञानभाष्य लिखा है, जिससे संस्कृतज्ञ ज्योतिष के विद्वानों का बहुत उपकार हुआ है। अभिप्राय यह है कि आधुनिक युग में पाश्चात्त्य ज्योतिष के सम्पर्क से गणित ज्योतिष के सिद्धान्तों का वैज्ञानिक विवेचन प्रारम्भ हुआ है । यदि भारतीय ज्योतिषी आकाश-निरीक्षण को अपनाकर नवीन ज्योतिष के साथ तुलना करें तो पूर्वमध्यकाल से चली आयी ग्रह-गणित की सारणियों की स्थूलता दूर हो जाये और भारतीय ज्योतिष की महत्ता अन्य देशवासियों के समक्ष प्रकट हो जाये। आधुनिककाल या अर्वाचीन : प्रमुख ज्योतिविदों का परिचय मुनीश्वर-यह रंगनाथ के पुत्र थे। इनका समय ईसवी सन् १६०३ माना जाता है। इन्होंने शक संवत् १५६८ भाद्रपद शुक्ला पंचमी सोमवार के भगणादि को सिद्ध कर सिद्धान्तसार्वभौम नामक एक ज्योतिष ग्रन्थ बनाया है। इन्होंने भास्कराचार्य के सिद्धान्तशिरोमणि और लीलावती नामक ग्रन्थों पर विस्तृत टीकाएँ लिखी हैं। यह काव्य, व्याकरण, कोश और ज्योतिष आदि अनेक विषयों के प्रकाण्ड विद्वान् थे। प्रथमाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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