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ग्रहवेध की प्रणाली उठती हुई-सी नजर आती है। नवीन ग्रह-गणित संशोधक भी इस काल में भास्कर के बाद इने-गिने ही हुए हैं। जातक और मुहूर्त-विषयक साहित्य इस काल में खूब पल्लवित हुआ है । मुहूर्त अंग पर स्वतन्त्र रूप से पूर्वमध्यकाल के ज्योतिर्विदों ने नाम मात्र को लिखा था किन्तु इस काल में यह अंग खूब पुष्ट हुआ है।
अर्वाचीन काल (ई. १६०१ से १९५१) सामान्य परिचय
___ अर्वाचीन काल के आरम्भ में मुसलिम संस्कृति के साथ-साथ पाश्चात्य सभ्यता का प्रचार भी भारत में हुआ। यों तो उत्तरमध्यकाल में ही ज्योतिषियों ने आकाशावलोकन त्यागकर पुस्तकों का पल्ला पकड़ लिया था और पुस्तकीय ज्ञान ही ज्योतिष माना जाने लगा था। सच बात तो यह है कि भास्कराचार्य के बाद मुसलिम राज्यों के कारण हिन्दूधर्म, सम्पत्ति, साहित्य और ज्योतिष आदि विषयों की उन्नति पर आपत्ति के पहाड़ गिरे जिससे उक्त विषयों का विकास रुक गया। कुछ धर्मान्ध साम्प्रदायिक पक्षपाती मुसलिम बादशाहों ने सम्प्रदाय की तेज़ शराब के नशे से चूर होकर भारतीय ज्ञान-विज्ञान को हिन्दू समाज की बपौती समझकर नष्ट-भ्रष्ट करने में जरा भी संकोच नहीं किया। विद्वानों को राजाश्रय न मिलने से ज्योतिष के प्रसार
और विकास में कुछ कम बाधाएँ नहीं आयीं। नवीन संशोधन और परिवर्द्धन तो दरकिनार रहा, पुरातन ज्योतिष ज्ञान-भण्डार का संरक्षण भी कठिन हो गया। यद्यपि कुछ हिन्दू, मुसलिम विद्वानों ने इस युग में फलित ग्रन्थों की रचनाएँ की, लेकिन आकाश-निरीक्षण की प्रथा उठ जाने से वास्तविक ज्योतिष तत्त्वों का विकास नहीं हो सका।
शकुन, प्रश्न, मुहूर्त, जन्मपत्र एवं वर्षपत्र के साहित्य की अवश्य वृद्धि हुई है। कमलाकर भट्ट ने सूर्यसिद्धान्त का प्रचार करने के लिए 'सिद्धान्ततत्त्वविवेक' नामक गणित-ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ रचा है। इस अर्वाचीन काल के प्रारम्भ में प्राचीन ग्रन्थों पर टीका-टिप्पण बहुत लिखे गये।
ई. सन् १७८० में आमेराधिपति महाराज जयसिंह का ध्यान ज्योतिष की ओर विशेष आकृष्ट हुआ और उन्होंने काशी, जयपुर एवं दिल्ली में वेधशालाएं बनवायीं, जिनमें पत्थरों की ऊँची और विशाल दीवालों के रूप में बड़े-बड़े यन्त्र बनवाये। स्वयं महाराज जयसिंह इस विद्या के प्रेमी थे, इन्होंने युरॅप की प्रचलित तारासूचियों में कई भूलें निकाली तथा भारतीय ज्योतिष के आधार पर नवीन सारणियां तैयार करायीं।
सामन्त चन्द्रशेखर ने अपने अद्वितीय बुद्धिकौशल द्वारा ग्रहवेध कर प्राचीन गणित-ज्योतिष के ग्रन्थों में संशोधन किया तथा अपने सिद्धान्तों द्वारा ग्रहों की गतियों के विभिन्न प्रकार बतलाये ।
भारतीय ज्योतिष
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