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________________ अद्भुत सागर नामक ग्रन्थ की रचना की है । इस ग्रन्थ में गर्ग, वृद्धगर्ग, वराह, पराशर, देवल, वसन्तराज, कश्यप, यवनेश्वर, मयूरचित्र, ऋषिपुत्र, राजपुत्र, ब्रह्मगुप्त, महबलभद्र, पुलिश, सूर्यसिद्धान्त, विष्णुचन्द्र और प्रभाकर आदि के वचनों का संग्रह है । ग्रन्थ बहुत बड़ा है । लगभग ७-८ हजार श्लोक प्रमाण में पूरा किया गया है । सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, भृगु, शनि, केतु, राहु, ध्रुव, ग्रहयुद्ध, संवत्सर, ऋक्ष, परिवेष, इन्द्रधनुष, गन्धर्वनगर, निर्घात, दिग्दाह, छाया, तमोधूमनीहार, उल्का, विद्युत्, वायु, मेघ, प्रवर्षण, अतिवृष्टि, कबन्ध, भूकम्प, जलाशय, देवप्रतिमा, वृक्ष, ग्रह, वस्त्रोपानहासनाद्य, गज, अश्व, विडाल आदि अनेक अद्भुत वार्ताओं का निरूपण इस ग्रन्थ में विस्तार से किया गया है । वास्तव में यह ग्रन्थ अपना यथार्थ नाम सिद्ध कर रहा है । इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ज्योतिष विद्या के ज्ञान के अतिरिक्त इससे अनेक इतिहास की बातें भी ज्ञात की जा सकती हैं । ज्योतिष का इतिहास लिखने में इससे बहुत बड़ी सहायता मिलती है । इस ग्रन्थ में पद्यों के अतिरिक्त बीच-बीच में गद्य भी दिया गया है । पद्मप्रभसूरि-नागौर की तापगच्छीय पट्टावली से पता चलता है कि यह वादिदेव सूरि के शिष्य थे। इन्होंने भुवन- दीपक या ग्रहभावप्रकाश नामक ज्योतिष का ग्रन्थ लिखा है । इस ग्रन्थ पर सिंहतिलकसूरि ने, जो सफल टीकाकार और ज्योतिष के मर्मज्ञ थे, वि. सं १३२६ में एक 'विवृति' नामक टीका लिखी है । इनकी तिलक नाम की टीका श्रीपति के पाटी गणित पर बहुत महत्त्वपूर्ण है । 'जैन साहित्यनो इतिहास' नामक ग्रन्थ में इनके गुरु का नाम विबुधप्रभ सूरि बताया है । इनके द्वारा रचित मुनिसुव्रतचरित, कुन्थुचरित और पार्श्वनाथस्तवन भी कहे जाते हैं । भुवन- दीपक का रचनाकाल वि. सं. १२९४ है । यह ग्रन्थ छोटा होते हुए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसमें ३६ द्वार - प्रकरण हैं । राशिस्वामी, उच्चनीचत्व, मित्रशत्रु, राहु का गृह, केतुस्थान, ग्रहों के स्वरूप, द्वादश भावों से विचारणीय बातें, इष्टकालज्ञान, लग्न-सम्बन्धी विचार, विनष्टग्रह, राजयोगों का कथन, लाभालाभ विचार, लग्नेश की स्थिति का फल, प्रश्न द्वारा गर्भविचार, प्रश्न द्वारा प्रसवज्ञान, यमजविचार, मृत्युयोग, चौर्यज्ञान, द्रेष्काणादि के फलों का विचार विस्तार से किया है । इस ग्रन्थ में कुल १७० श्लोक हैं । इसकी भाषा संस्कृत है, ज्योतिष की ज्ञातव्य सभी बातें इस ग्रन्थके द्वारा जानी जा सकती हैं । नरचन्द्र उपाध्याय - यह कासगुहगच्छ के सिंहसूरि के शिष्य थे । इन्होंने ज्योतिषशास्त्र के अनेक ग्रन्थों की रचना की है। वर्तमान में इनके बेड़ाजातकवृत्ति, प्रश्नशतक, प्रश्नचतुर्विंशतिका, जन्मसमुद्र सटीक, लग्नविचार, ज्योतिषप्रकाश उपलब्ध हैं । इनके सम्बन्ध में एक स्थान पर कहा गया है— देवानन्दमुनीश्वरपदपङ्कजसेवकैः षट्चरणः । ज्योतिःशास्त्रमकार्षीन् नरचन्द्राख्यो मुनिप्रवरः ॥ प्रथमाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only १०३ www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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