________________
मल्लिषेण-यह संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान् थे । इनके पिता का नाम जिनसेन सूरि था, यह दक्षिण भारत के धारवाड़ जिले के अन्तर्गत गदग तालुका नामक स्थान के रहनेवाले थे। इनका समय ईसवी सन् १०४३ माना गया है। इनका ज्योतिष का ग्रन्थ 'आयसद्भाव' नामक है। ग्रन्थ के आदि में लिखा है
सुग्रीवादिमुनीन्द्रः रचितं शास्त्रं यदायसद्भावम् । तसंप्रत्यार्यामिविरच्यते मल्लिषेणेन ॥ ध्वजधूमसिंहमण्डलवृषखरगजवायसा भवन्त्यायाः ।
ज्ञायन्ते ते विद्वद्भिरिहैकोत्तरगणनया चाष्टौ ॥ इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि इनके पूर्व में भी सुग्रीव आदि जैन मुनियों के द्वारा इस विषय की और रचनाएँ भी हुई थीं; उन्हीं के सारांश को लेकर इन्होंने 'आयसद्भाव' की रचना की है। इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में आय की अधिष्ठात्री देवी पुलिन्दिनी को माना है और उसका स्मरण भी किया है। इस ग्रन्थ में कुल १९५ आर्याएँ तथा अन्त में एक गाथा, इस तरह १९६ पद्य है। ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थकर्ता ने कहा है कि इस ग्रन्थ के द्वारा भूत, भविष्यत् और वर्तमान इन तीनों कालों का ज्ञान हो सकता है। तथा अन्य को इस विद्या को न देने के लिए जोर दिया है
अन्यस्य न दातव्यं मिथ्यादृष्टस्तु विशेषतोऽवधेयम् ।
शपथं च कारयित्वा जिनवरदेव्याः पुरः सम्यक् ॥ ग्रन्थकर्ता ने इसमें ध्वज, धूम, सिंह, मण्डल, वृष, खर, गज और वायस इन आठों आयों का स्वरूप तथा उनके फलाफल का सुन्दर विवेचन दिया है ।
राजादित्य-इनके पिता का नाम श्रीपति और माता का नाम वसन्ता था । इनका जन्म कोण्डिमण्डल के 'यूविनवाग' नामक स्थान में हुआ था। इनके नामान्तर राजवर्म, भास्कर और वाचिराज बताये जाते हैं। यह विष्णुवर्धन राजा की सभा के प्रधान पण्डित थे, अतः इनका समय ईसवी सन् ११२० के लगभग है। यह कवि होने के साथ-साथ गणित-ज्योतिष के माने हुए विद्वान् थे। कर्णाटक कविचरित के लेखक का कथन है कि कन्नड़ साहित्य में गणित का ग्रन्थ लिखनेवाला यह सबसे पहला विद्वान् था। इनके द्वारा रचित व्यवहारगणित, क्षेत्रगणित, व्यवहाररत्न और जैनगणितसूत्रटीकोदाहरण, चित्रहसुगे और लीलावती ये गणित ग्रन्थ प्राप्य हैं। इनके ये समस्त ग्रन्थ कन्नड़ भाषा में हैं। इनके ग्रन्थों में अंकगणित के सभी विषय के अतिरिक्त बीजगणित और रेखागणित के भी अनेक विषय आये हैं। इन सब गणितों का ग्रहगणित में अत्यधिक उपयोग होता है। इनके गुरु का नाम शुभचन्द्रदेव बताया जाता है।
बल्लालसेन–मिथिला के महाराज लक्ष्मणसेन के पुत्र थे। इन्हें ज्योतिषशास्त्र से बहुत प्रेम था। राज्याभिषेक के आठ वर्ष बाद ईसवी सन् ११६८ में संहितारूप
भारतीय ज्योतिष
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org