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इस श्लोक द्वारा देवानन्द नामक मुनि इनके गुरु मालूम पड़ते हैं । दिगम्बर समुदाय में 'नारचन्द्र' नामक ज्योतिष ग्रन्थ जो उपर्युक्त ग्रन्थों से भिन्न है, नरचन्द्र द्वारा रचित माना जाता है । इनके सम्बन्ध में एक स्थान पर यह भी उल्लेख मिलता है— श्रीकाश हृद्गणेशोद्योतन- सूरीष्टसिंहसूरिभृतः । नरचन्द्रोपाध्यायः शास्त्रं चन्द्रेऽर्थबहुतमिदम् ॥
नरचन्द्र ने सं. १३२४ में माघ सुदी ८ रविवार को बेड़ाजातकवृत्ति की रचना १०५० श्लोक प्रमाण में की है । इनकी ज्ञानदीपिका नामक एक अन्य रचना भी ज्योतिष की बतायी जाती है । बेड़ाजातकवृत्ति में लग्न और चन्द्रमा से ही समस्त फलों का विचार किया गया है । यह जातक ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी है । प्रश्नचतु विंशतिका के प्रारम्भ में ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण गणित लिखा है । ग्रन्थ अत्यन्त गूढ़ और रहस्यपूर्ण है । पञ्चवेदयामगुण्ये रविभुक्तदिमान्विते ।
त्रिंशद्भुक्के स्थितं यत्तत् लग्नं सूर्योदयक्षतः ॥
उपर्युक्त श्लोक में अत्यन्त कौशल के साथ दिनमान सिद्ध किया है । ज्योतिषप्रकाश फलित ज्योतिष का मुहूर्त और संहिता - विषयक सुन्दर ग्रन्थ है । इसके दूसरे भाग में जन्मकुण्डली के फल का बड़ी सरलता से विचार किया है । फलित ज्योतिष का आवश्यक ज्ञान केवलज्योतिषप्रकाश द्वारा प्राप्त किया जा सकता है ।
अटुकवि या अद्दास — यह जैन ब्राह्मण थे । इनका समय ईसवी सन् १३०० के लगभग माना जाता है । अर्हद्दास के पिता नागकुमार थे । यह कन्नड़ भाषा के प्रकाण्ड विद्वान् थे, इन्होंने कन्नड़ में अट्ठमत नामक ज्योतिष का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है । शक संवत् की चौदहवीं शताब्दी में भास्कर नाम के आन्ध्रकवि ने इस ग्रन्थ का तेलुगु भाषा में अनुवाद किया है । अट्ठमत में वर्षा के चिह्न, आकस्मिक लक्षण, शकुन, वायु, चन्द्र, गोप्रवेश, भूकम्प, भूजातफल, उत्पातलक्ष्य, परिवेषलक्षण, इन्द्रधनुर्लक्षण, प्रथमगर्भलक्षण, द्रोणसंख्या, विद्युल्लक्षण, प्रतिसूर्यलक्षण, संवत्सरफल, ग्रहद्वेष, मेघों के नाम, कुल-वर्ण, ध्वनिविचार, देशवृष्टि, मासफल, राहुचक्र, नक्षत्रफल, संक्रान्तिफल आदि विषयों का प्रतिपादन किया गया है ।
महेन्द्रसूरिर - यह भृगुफर निवासी मदनसूरि के शिष्य फ़ीरोज़शाह तुगलक के प्रधान सभापण्डित थे । इन्होंने नाड़ीवृत्त के धरातल में गोलपृष्ठस्थ सभी वृत्तों का परिणमन करके यन्त्रराज नाम ग्रह गणित का उपयोगी ग्रन्थ बनाया है । इनके शिष्य मलयेन्दुसरि ने सोदाहरण टीका लिखी है। इस ग्रन्थ की प्रशंसा करते हुए स्वयं ग्रन्थकार ने लिखा है
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यथा भटः प्रौढरणोस्कटोऽपि शस्त्रैर्विमुक्तः परिभूतिमेति । तद्वन्महाज्योतिषनिस्तुषोऽपि यन्त्रेण होनो गणकस्तथैव ॥
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