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________________ इन्होंने पृथ्वी को स्थिर माना है, इसलिए आर्यभट्ट के पृथ्वी-चलन सिद्धान्त की जी-भर निन्दा की है। ब्रह्मगुप्त ने अपने पूर्व के ज्योतिषियों की ग़लती का समाधान विद्वत्ता के साथ किया है। वैसे तो यह आर्यभट्ट के निन्दक थे, पर अपना करण ग्रन्थ खण्डखाद्यक उसी के अनुकरण पर लिखा है। इस ग्रन्थ के आरम्भ के आठ अध्याय तो केवल आर्यभट्ट के अनुकरण मात्र हैं, उत्तर भाग के तीन अध्यायों में आर्यभट्ट की आलोचना है । अलबेरूनी ने ब्रह्मगुप्त के ज्योतिष ज्ञान की बहुत प्रशंसा की है। ___ मुंजाल-इनका बनाया हुआ 'लघुमानस' नामक करण ग्रन्थ है, जिसमें ५८४ शकाब्द का अहर्गण सिद्ध किया गया है। इस ग्रन्थ में मध्यमाधिकार, स्पष्टाधिकार, तिथ्यधिकार, त्रिप्रश्नाधिकार, ग्रहयुत्यधिकार, सूर्यग्रहणाधिकार, चन्द्रग्रहणाधिकार और शृंगोन्नत्यधिकार ये आठ प्रकरण है। गणित ज्योतिष की दृष्टि से ग्रन्थ अच्छा मालूम पड़ता है । विषय-प्रतिपादन की शैली सरल और हृदयग्राह्य है । पाठक पढ़ते-पढ़ते गणितजैसे शुष्क विषय को भी रुचि और धैर्य के साथ अन्त तक पढ़ता जाता है और अन्त तक जी नहीं ऊबता है । ग्रन्थकार की यह शैली प्रशंसा योग्य है। __ महावीराचार्य-ब्रह्मगुप्त के पश्चात् जैन सम्प्रदाय में महावीराचार्य नाम के एक धुरन्धर गणितज्ञ हुए। यह राष्ट्रकूट वंश के अमोघवर्ष नृपतुंग के समय में हुए थे, इसलिए इनका समय ईसवी सन् ८५० माना जाता है। इन्होंने ज्योतिषपटल और गणितसारसंग्रह नाम के ज्योतिष ग्रन्थों की रचना की है। ये दोनों ही ग्रन्थ गणित ज्योतिष के हैं, इन ग्रन्थों से इनकी विद्वत्ता का ज्ञान सहज में ही लगाया जा सकता है। गणितसार के प्रारम्भ में गणित विषय की प्रशंसा करते हुए लिखा है कामतन्त्रेऽर्थशास्त्रे च गान्धर्वे नाटकेऽपि वा। सूपशास्ने तथा वद्ये वास्तुविद्यादिवस्तुषु ॥ छन्दोऽलङ्कारकाव्येषु तर्कव्याकरणादिषु । कलागुणेषु सर्वेषु प्रस्तुतं गणितं परम् ॥ सूर्यादिग्रहचारेषु ग्रहणे ग्रहसंयुती। निप्रश्ने चन्द्रवृत्तौ च सर्वत्राङ्गीकृतं हि तत् ॥ इस ग्रन्थ में संज्ञाधिकार, परिकर्मव्यवहार, कलासवर्ण व्यवहार, प्रकीर्णव्यवहार, त्रैराशिकव्यवहार, मिश्रक व्यवहार; क्षेत्र गणितव्यवहार, खातव्यवहार एवं छायाव्यवहार नाम के प्रकरण हैं। मिश्रक व्यवहार में समकुट्टीकरण, विषमकुट्टीकरण और मिश्रकुट्टीकरण आदि अनेक प्रकार के गणित हैं। पाटीगणित और रेखागणित की दृष्टि से इसमें अनेक विशेषताएँ हैं। इनके क्षेत्रव्यवहार प्रकरण में आयत को वर्ग और वर्ग को आयत के रूप में बदलने की प्रक्रिया बतायी है । एक स्थान पर वृत्तों को वर्ग और वर्गों को वृत्तों में परिणत किया गया है। समत्रिभुज, विषमत्रिभुज, समकोण चतुर्भुज, विषमकोण चतुर्भुज, वृत्तक्षेत्र, सूचीव्यास, पंचभुजक्षेत्र, एवं बहुभुजक्षेत्रों का क्षेत्रफल, भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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