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________________ फलित ज्योतिष केवल पंचांग ज्ञान तक ही सीमित नहीं था, किन्तु समस्त मानव जीवन के विषयों की आलोचना और निरूपण करना भी इसी में शामिल था। ईसवी सन् ५०० के लगभग ही भारतीय ज्योतिष का सम्पर्क ग्रीस, अरब और फ़ारस आदि देशों के ज्योतिष के साथ हुआ था। वराहमिहिर ने यवनों के सम्बन्ध में लिखा है कि म्लेच्छा हि यवनास्तेषु सम्यक् शास्त्रमिदं स्थितम् । ऋषिवत्तेऽपि पूज्यन्ते किं पुनदेवविद् द्विजः ॥ अर्थात्-म्लेच्छ-कदाचारी यवनों के मध्य में ज्योतिषशास्त्र का अच्छी तरह प्रचार है, इस कारण वे भी ऋषि-तुल्य पूजनीय है; इस शास्त्र का जाननेवाला द्विज हो तो बात ही क्या ? इससे स्पष्ट है कि वराहमिहिर के पूर्व यवनों का सम्पर्क ज्योतिष-क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में विद्यमान था। ईसवी सन् ७७१ में भारत का एक जत्था बग़दाद गया था और उन्हीं में से एक विद्वान् ने 'ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त' का व्याख्यान किया था । अरब में इस ग्रन्थ का अनुवाद 'अस सिन्द हिन्द' नाम से हुआ है। इब्राहीम इब्रहबीब अलफ़जारी ने इस ग्रन्थ के आधार पर मुसलिम चान्द्रवर्ष के स्पष्टीकरण के लिए एक सारणी बनायी थी। अरब में और भी कई विद्वान् ज्योतिष के प्रचार के लिए गये थे, जिससे वहाँ भारत के युगमान के अनुकरण पर हजारों-लाखों वर्षों की युगप्रणाली की कल्पना कर ग्रन्थ लिखे गये। भारत का ग्रीस के साथ ईसवी सन् १०० के लगभग ही सम्पर्क हो गया था; जिससे ज्योतिषशास्त्र में परस्पर में बहुत आदान-प्रदान हुआ। भारतीय ज्योतिष में अक्षांश, देशान्तर, चरसंस्कार और उदयास्त की सूक्ष्म विवेचना मुसलिम और ग्रीक सभ्यता के सम्पर्क से इस युग में विशेष रूप से हुई। पर सिद्धान्त और संहिता इन दो अंगों को साहित्यिक रूप प्रदान करने का सौभाग्य भारत को ही है। यद्यपि जातक अंग को जन्म इस देश ने दिया था, पर लालन-पालन में विदेशी सभ्यता का रंग चढ़ने से भारत मां की गोद में पलने पर भी कुल संस्कार पूर्वमध्यकाल में ग्रीक लोगों के पड़ गये, जो आज तक अक्षुण्ण रूप से चले आ रहे हैं। . आज के कुछ विद्वान् ईसवी सन् ६००-७०० के लगभग भारत में प्रश्न अंग का ग्रीक और अरबों के सम्पर्क से विकास हुआ बतलाते हैं तथा इस अंग का मूलाधार भी उक्त देशों के ज्योतिष को मानते हैं, पर यह ग़लत मालूम पड़ता है। क्योंकि जैन ज्योतिष जिसका महत्त्वपूर्ण अंग प्रश्नशास्त्र है, ईसवी सन् की चौथी और पांचवीं शताब्दी में पूर्ण विकसित था। इस मान्यता में भद्रबाहुविरचित अर्हच्चूडामणिसार प्रश्नग्रन्थ प्राचीन और मौलिक माना गया है। आगे के प्रश्नग्रन्थों का विकास इसी ग्रन्थ की मूल भित्ति पर हुआ प्रतीत होता है। जैन मान्यता में प्रचलित प्रश्न-शास्त्र का विश्लेषण करने से प्रतीत होता है कि भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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