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४. धर्म का स्वरूप
३. अन्तर्ध्वनि तथा संस्कार फलस्वरूप उनको स्वयं दुखी करने या पीड़ा देने से दूर रहना अथवा किसी दूसरे से पीड़ित हुआ देखकर, उनके कष्ट को जिस किस प्रकार भी दूर करके उन्हें पुन: शान्ति प्रदान करना । त्याग या दमन का अर्थ है, सभी उन वस्तुओं तथा कार्यों का त्याग करना, जिनके द्वारा विकल्पोत्पादक अशांति में अथवा व्याकुलता की जननी अभिलाषा में वृद्धि होने की सम्भावना हो। अत: वे सर्व ही लक्षण एक शांति की सिद्धि के लिये हैं। अन्तर केवल इतना है कि पहले वाले
वाले दया आदि के लक्षण चारित्र या पुरुषार्थ को आश्रय करके लिखे गये हैं, स्वभाव लक्षण श्रद्धा व ज्ञान को आश्रय करके लिखा गया है, तथा सुख में धरने वाला लक्षण उपरोक्त क्रियाओं के फल को दृष्टि में रखकर किया गया है।
इस प्रकार धर्म की आवश्यकता तथा सत्यार्थ-शांति व धर्म की पहिचान जान लेने के पश्चात् अब उस धर्म की सिद्धि के उपाय या क्रम की बात चलती है जो कल से प्रारम्भ होगी।
३. अन्तर्ध्वनि तथा संस्कार-अनादि काल से आज तक के इतने लम्बे जीवन में पहिला अवसर है जबकि मैं धर्म प्रारम्भ करने चला हूँ । नवजात शिशु चलना प्रारम्भ करने का प्रयास करता है। आज अत्यन्त सौभाग्य का दिन है। प्रभु की शरण में आना ही शुभ चिह्न है । इससे उत्तम शुभ मुहूर्त और कौन सा हो सकता है? मुझे आशीर्वाद दीजिये गुरुवर ! वह कौन सा आधार है, जिसको पकड़कर मुझे अपने डगमगाते हुये पग इस धर्म मार्ग पर रखने होंगे? बच्चे को गडीलना दिया जाता है, मुझे किसका सहारा लेना होगा गुरुवर? क्या आपका सहारा पर्याप्त है ? नहीं, मेरा सहारा तुझे अधिक लाभ नहीं पहुँचा सकता । मेरा सहारा तो केवल इतना ही है, कि मैं किन्हीं दिशा-विशेषों की ओर संकेत करके आगे आने वाली ठोकरों से तुझे सावधान कर दूं। पर चलना तो तुझे ही होगा अपना सहारा लेकर, अर्थात् अन्तर्ध्वनि का सहारा लेकर । मैं तो केवल उस अन्तर्ध्वनि को पढ़ने का उपाय तुझे दर्शा सकता हूँ पर उसे तेरे अन्दर उत्पन्न नहीं करा सकता। अत: उस अन्तर्ध्वनि की मेरे कहे अनुसार पहिचान कर, वही तेरे मार्ग का सबसे बड़ा साथी होगा, पद-पद पर वही तेरी रक्षा करेगा।
देख ! कोई भी बुरा काम करके क्या तेरा अन्त:करण तुझे धिक्कारता हुआ प्रतीत नहीं होता? विचार तो सही कि कौन शक्ति है जो उस बालक को अपने साथी की पुस्तकं चुराते हुये कंपा देती है ? किसकी प्रेरणा से वह इधर उधर ताकने लगता है ? पुस्तक उठाता और सीधे चल देता घर । वहाँ कौन था उसे रोकने वाला? किसी व्यक्ति की चुगली कर देने के पश्चात् तू क्यों उस व्यक्ति से आँख नहीं मिला सकता? कौन शक्ति है जो तुझे उस व्यक्ति से आँख चुराने के लिये मजबूर करती है ? नदी में डूबते हुये किसी अपरिचित बालक को नदी से निकालकर तू क्यों पुलकित सा हो जाता है ? उसको साथ लेकर उसके घर तक जाते हये क्यों तझे गर्व सा प्रतीत होता है? भखा होते हये भी. किसी दसरे के हाथ पर से रोटी क्यों नहीं उठा लेता त? कौन है वह शक्ति जिसकी प्रेरणा से त शभ कार्यों को करते हये हर्षित होता है, और अशभ कार्यों को करते हुये डरता है ? बाहर में तो कोई भी तुझे रोकता नहीं, या करने के लिये कहता नहीं।
बस इसी तेरे अन्त:करण की शक्ति-विशेष को यहाँ अन्तर्ध्वनि' शब्द का वाच्य बनाया जा रहा है । सर्व जीवों की यह कोई स्वाभाविक ध्वनि है, जो अन्तर में छिपी, स्वत: बिना पूछे, अशुभ कार्य करने का निषेध और शुभ कार्य करने की प्रेरणा देती रहती है। इसके सम्बन्ध में अधिक कहने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि यह सर्व-परिचित है। इतनी बात अवश्य है कि किन्हीं व्यक्तियों में, किन्हीं कार्य विशेषों के लिये यह बड़ी जोर से पुकारा करती है, और किन्हीं व्यक्तियों में, किन्हीं कार्य-विशेषों के लिये इसकी आवाज बहुत धीमी होती है । सम्भवत: इतनी धीमी कि वह स्वयं भी उसे सुनने न पाये । आज का एक डाकू चोरी करने का निषेध करती हुई उस अन्तर्ध्वनि को सुन नहीं पाता, परन्तु वही उस काम को करने के प्रारम्भिक दिवस में बहुत जोर से सुन रहा था उसे । इतने पर से यह नहीं कहा जा सकता कि आज उसकी अन्तर्ध्वनि सर्वथा मर चुकी है। 'अचेत हो गई है' यह भले कहो । क्योंकि आज भी अपने सहायक डाकुओं की सम्पत्ति पर हाथ डालने का साहस उसे नहीं है ? आज के युग का एक विशेष आविष्कार उसके हृदय में दबी हई उस अन्तर्ध्वनि की किसी तेजहीन कणिका के अस्तित्व को दर्शा रहा है ? भारत में न सही पर इंगलैण्ड की न्यायशालाओं में यह यन्त्र काम में आ रहा है। कितना भी बड़े से बड़ा तथा सिद्ध हस्त दोषी इस यन्त्र पर हाथ रखकर अपने को निर्दोष सिद्ध करने का प्रयत्न करे तो इस यन्त्र को धोखा नहीं दे सकता । उसकी कांपती हई सई यह बता ही देती है कि अब तक भी इसके हृदय में अपने दोष के प्रति कुछ कम्पन पड़ा हुआ है जो इसको बराबर धिक्कार रहा है । यह भले ही उसको सुनने न पावे, पर इस यन्त्र को वह स्पष्ट सुनाई दे रहा है।
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