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________________ ३०६ ४७. सल्लेखना ५. यह आत्म हत्या नहीं अपराधों के प्रति ही झुकता है। योगी के आगे-आगे आने वाले जीवनों में बराबर शान्ति की वृद्धि होती है और अपराधी के आगे-आगे वाले जीवनों में क्रोध की। योगी तो अपने प्रत्येक जीवन में शरीर को सेवक बनाकर अन्त समय में सल्लेखना द्वारा उसका त्याग करता हुआ प्रकाश की ओर चला जाता है और अपराधी अपने प्रत्येक जीवन में उसका दास बनकर अन्धकार की ओर चला जाता है । दो या चार जीवनों के पश्चात् ही योगी की साधना तो पूर्णता को स्पर्श कर लेती है, अर्थात् वह तो पूर्ण शान्त या मुक्त हो जाता है, पर अपराधी कषाय व चिन्ताओं के सागर रूप इस संसार में सदा गोते खाता रहता है। सल्लेखना शान्ति के उपासक की आदर्श मृत्यु है, एक सच्चे वीर का महान् पराक्रम है । इससे पहले कि शरीर उसे जवाब दे वह स्वयं उसे समतापूर्वक जवाब दे देता है, और अपनी शान्ति की रक्षा में सावधान रहता हुआ उसमें ही लय हो जाता है। SAM u nanisonalisaar । । HIMANIR a shiruniyamaweirdPMunauslamNaimansuine । 4 Realedhis a - S ATTRIPMARRANA IDREAKS PARASHARE SAIलाल मन्दिर दर्शन कर वापिस आते हुए भक्तजनों के साथ वर्णी जी For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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