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________________ ४५. परिषहजय व अनुप्रेक्षा २९८ ४. बारह भावनायें - बह रहा है मल । दुर्गन्धि के सिवा और है ही क्या इसमें, नहीं विश्वास आता तो एक क्षण भर को इधर आ, ले इस पर से एक मक्खी के पंख के समान पतली सी झिल्ली पृथक् करता हूँ। अब देख इसे कैसा सुन्दर लगता है यह तुझे ? छोटी-छोटी मक्खियाँ ही छूट-चूँटकर खा जायेंगी इसे । इसकी सुन्दरता देखनी NANE हैं तो शौचगृह में जाकर देख । क्यों लुभाता है अपनी इस क्षणिक सुन्दरता पर ? यदि कदाचित् दुर्भाग्यवश इसे चेचक निकल आये तो तू इसके पास जाता हुआ भी सम्भवत: डरने लगे। इसकी सुन्दरता देखनी है तो देख इसके वृद्ध शरीर को, कुष्ट हो जाने के कारण लाल-लाल दुर्गन्धित घावों से अलंकरित हो गया है जो । इस अत्यन्त घिनावनी व अशुचि' देह के साथ इससे अधिक अपवित्र क्या है । तनिक चेचक निकल आए यारी जोड़कर, इसकी रक्षा करने लिए अपना सर्वस्व तो देख इसकी सुन्दरता तथा स्वच्छता। लुटा रहा है ? आश्चर्य है। ___(७) नित्य नये-नये रूप धारण करके प्रकट होने वाले इन विकल्पों में क्या देख रहा है भगवन् ! क्या भूल गया है 'आस्रव के प्रकरण को? अब पुन: देख ले उसे (अधिकार नं० १३, १४)। याद आ जायेगी इसकी दुष्टता । इससे अपनी रक्षा कर इसमें भूलकर आत्मसमर्पण न कर। (८) अब गुरुदेव की शरण में आया है तो कुछ लाभ उठा । इन विकल्पों में ब्रेक लगा, अब तक आये तो आये देख आगे न आने पाएं । भूला न समझ जो साँझ पड़े घर लौट आये । निज वैभव का आश्रय लेकर इनका तिरस्कार कर दे, इनको दबा दे, संवरण कर दे। 'संवर' पर दिये गए इतने बड़े उपदेश को याद कर । ... (९) एक बार तिरस्कार करके देख कहाँ जाते हैं ये ? तिरस्कृत होकर कब तक पड़े रहेंगे तेरे द्वार पर भूखे नंगे ये बेचारे । आखिर चले जायेंगे एक दिन छोड़कर तेरा संग। जल्दी छूटना चाहता है इनसे ? तब इससे अच्छी तो बात ही K DDD र वर्षा तथा आतापन योग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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