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________________ - का० ७६. ६ ५४३ ] मीमांसकमतम् । यस्य ग्रहणाय न जायते न प्रवर्तते, तत्र आधेयजितस्याधारस्य ग्रहणेऽभावप्रमाणता अभावस्य प्रामाण्यम् । एतेन निषिध्यमानात्तदन्यज्ज्ञानमुक्तम् । तथा 'प्रमाणपञ्चकं यत्र' इति पदस्यात्रापि संबन्धाद्यत्र वस्तुरूपे घटादेवस्तुनो रूपेऽसदंशे ग्राहकतया न जायते, तत्रासदंशेऽभावस्य प्रमाणता। एतेन प्रमाणपञ्चकाभाव उक्तः। तथा प्रमाणपञ्चकं 'वस्तुसत्तावबोधार्थ' घटादिवस्तुसत्ताया अवबोधाय न जायते -असदंशे न व्याप्रियते तत्र सत्तानवबोधेऽभावस्य प्रमाणता। अनेनात्मा विषयग्रहणरूपेगापरिणत उक्तः । एवमिहाभावप्रमाणं त्रिधा प्रदर्शितम् । तदुक्तम् "प्रत्यक्षादेरनुत्पत्तिः, प्रमाणाभाव उच्यते। सात्मनो [5] परिणामो वा, विज्ञानं वान्यवस्तुनि ॥१॥ [ मी. श्लोक. अभाव. श्लो ११] ६५४१. अत्र साशब्दोऽनुत्पत्तेविशेषणतया योज्य इति सन्मतिटीकायामभावप्रमाणं यथा विधोपदर्शितं तथेहापि तद्दर्शितम् । ६५४२. रत्नाकरावतारिकायां तु प्रत्यक्षादेरनुत्पत्तिरित्यस्यैवोक्तस्य बलेन द्विधा तद्वर्णितमास्ते । तत्र सशब्दः पुल्लिङ्गःप्रमाणाभावस्य विशेषणं कार्य इति । तत्त्वं तु बहुश्रुता जानते। ६५४३. अथ येऽभावप्रमाणमेकधाभिदधति तन्मतेन प्रस्तुतश्लोको व्याख्यायते। प्रमाण भतल आदि आधारमें घटादि रूप आधेयके ग्रहण करनेके लिए प्रवत्त नहीं होते उस घटादि आधेयसे शून्य शुद्ध भूतलके ग्रहण करने के लिए अभावकी प्रमाणता है। इस अर्थसे निषिध्यमान घटसे अन्य-भिन्न शुद्ध भूतलका ज्ञान हो अभाव प्रमाण होता है। 'प्रमाणपञ्चकं यत्र' इस पदका सम्बन्ध यहां भी होता है। अर्थात्-जिस वस्तुरूप-घटादि वस्तुके असदंशमें पांच प्रमाणोंकी प्रवृत्ति नहीं होती उस असदंशमें अभाव प्रमाण होता है। इससे पांच प्रमाणोंके अभावरूप अभाव प्रमाणका कथन हुआ। इसी तरह घटादि वस्तुओंकी सत्ताको सिद्ध करनेके लिए जब पांच प्रमाण उत्पन्न नहीं होते तब सत्ताका अनवबोध-अज्ञान रहनेपर अभावको प्रमाणता है। इस अर्थमें आत्माको विषय ग्रहण रूप परिणति न होना हो अभाव प्रमाण है। इस तरह अभाव प्रमाण तीन प्रकारका कहा गया है। कहा भी है-प्रत्यक्षादि पांच प्रमाणोंकी अनुत्पत्तिको प्रमाणाभावअभाव प्रमाण कहते हैं । अथवा आत्माको विषय ग्रहण रूपसे परिणति न होना या घटादि निषेध्य पदार्थोंसे भिन्न शुद्ध भूतल आदि वस्तुओंका परिज्ञान होना भी अभाव प्रमाण है।" . ५४१. श्लोकमें 'सा' शब्द अनुत्पत्तिका विशेषण है। सन्मति-तर्ककी टोकामें अभाव प्रमाणका इसी तरह तीन प्रकारसे व्याख्यान किया है। हमने भी उन्हींके अनुसार यहां तीनों प्रकार बता दिये हैं। ६५४२. रत्नाकरावतारिकामें प्रत्यक्षादिकी अनुत्पत्तिको ही दो रूप मानकर उसी श्लोकसे अभाव प्रमाणके दो ही प्रकार बताये हैं। 'सः' शब्द पुल्लिग है अतः वह प्रमाणाभावका विशेषण है । अभाव प्रमाण दो प्रकारका है या तीन प्रकारका इसका मर्म तो बहुश्रुत आचार्योंके ग्रन्थोंसे ही समझ लेना चाहिए। ६५४३. जब जो अभाव प्रमाणको एक ही प्रकारका मानते हैं उनके मतसे इस श्लोकका १. -रूपेऽसदंशे म. २। २. -ते तत्र सत्ता -भ. २। -ते न व्याप्ति -म.., प. १, २। ३. -रूपेण परि-आ.। ४. अत्र सशब्दो आ., क.। ५. सन्मति.टी., पृ. ५८०। ६. -स्यैवानुक्तस्य भ, २ । ७. तत्र शब्दः भ.२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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