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________________ -का. ५७. ६ ४१७] जैनमतम् । ३९१ ६४१५. एवं च केवलस्य सामान्यस्य विशेषस्य च द्वयोर्वा परस्परविविक्तयोस्तयोहतत्वाघटनादनुवृत्तव्यावृत्तप्रत्ययनिबन्धनपरस्परसंबलितसामान्यविशेषात्मनो हेतोरनेकान्तात्मनि साध्ये गमकत्वमभ्युपगन्तव्यम्। ६४१६. न च यदेव रूपं रूपान्तराद्वयावर्तते तदेव कथमनुवृत्तिमासादयति, यच्चानुवर्तते तत्कथं व्यावृत्तिमाश्रयति इति वक्तव्यं, अनुवृत्तव्यावृत्तरूपतयाध्यक्षतः प्रतीयमाने वस्तुरूपे विरोधासिद्धेः, सामान्यविशेषवच्चित्रज्ञानवच्चित्रपटस्यैकचित्ररूपवद्वा।। ४१७. किं च एकान्तवाद्युपन्यस्तहेतोः साध्यं कि सामान्यमाहोस्विद्विशेष उतोभयं परस्परविविक्तमुतस्विदनुभयमिति विकल्पाः । न तावत्सामान्यम्, केवलस्य तस्यासंभवादर्थक्रियाकारित्व. वैकल्याच्च । नापि विशेषः, तस्याननुयायित्वेन साधयितुमशक्यत्वात् । नाप्युभयम्; उभयदोषानतिवृत्तः । नाप्यनुभयम; तस्यासतो हेत्वव्यापकत्वेन साध्यत्वायोगात । तस्माद्विवादास्पदीभूतसामान्यविशेषोभयात्मकसाध्यधर्मस्य साध्यमिणि साधनायान्योन्यानुविद्धान्वयव्यतिरेकस्वभावद्वयात्मैकहेतोः प्रदर्शने लेशतोऽपि नैकान्तपक्षोक्तदोषावकाशः संभवी, अतोऽनेकान्तात्मकं हेतुस्वरूपं ६४१५. इस तरह हेत न तो केवल सामान्यरूप हो सकता है न केवल विशेषरूप और न परस्पर निरपेक्ष स्वतन्त्र सामान्य विशेष रूप ही। अतः परस्पर सापेक्ष सामान्य विशेषात्मक रूप ही हेतु अनेकान्तात्मक साध्यका अनुमापक हो सकता है। परस्पर तादात्म्य रखनेवाले सामान्य और विशेष ही अनुगताकार साधारण प्रत्यय तथा व्यावृत्ताकार विलक्षण प्रत्यक्षमें कारण होते हैं। ६४१६. शंका-जो पदार्थ विशेषात्मक है दूसरोंसे व्यावृत्त होता है वही अनुवृत्त-साधारण प्रत्ययमें कारण कैसे हो सकता है। इसी तरह जो साधारण सामान्यरूप होकर अनुगत प्रत्ययमें कारण होता है वही व्यावृत्त प्रत्ययमें कारण कैसे हो सकता है ? ये दोनों ही रूप परस्पर विरोधी हैं, अतः एक वस्तुमें कैसे रह सकते हैं ? समाधान-जिस तरह सामान्य विशेष-पृथिवीत्व आदि अपर सामान्य जलादिसे व्यावर्तक होनेके कारण विशेष रूप होकर भी पृथिवी व्यक्तियों में अनुगत-एकाकार प्रत्यय करानेके कारण सामान्यरूप भी हैं। अथवा जिस प्रकार चित्रज्ञान एक होकर भी अनेक नीलपीतादि आकारोंको धारण करता है। अथवा जैसे एक ही रंग-बिरंगे चित्रपटमें अनेक नीले-पीले रंग रह जाते हैं उसी तरह एक ही वस्तु सामान्य और विशेष दो आकारोंको भी धारण कर सकती है। जब एक ही वस्तुका अनुगताकार तथा व्यावृत्ताकार प्रत्ययमें कारण होना प्रत्यक्ष सिद्ध है तब उनमें विरोध कैसे हो सकता है ? विरोध तो उनमें होता है जिनकी एक साथ उपलब्धि न हो सकती हो। ६४१७. अच्छा, आप सब एकान्तवादी कृपया यह बतादें कि आप अपने हेतुओंका साध्य केवल सामान्यरूप ही मानते हैं, या विशेषरूप, अथवा परस्पर निरपेक्ष उभयरूप, किंवा अनुभयरूप ? केवल सामान्य पदार्थ तो गधेके सींगकी तरह असत् है, वह कोई भी अर्थ-क्रिया नहीं कर सकता। अतः उसे साध्य बनाना निरर्थक ही है। केवल विशेष तो दूसरे व्यक्तिमें अनुगत नहीं होता अतः उसका सम्बन्ध अगृहीत रहनेके कारण वह साध्य नहीं बनाया जा सकता। परस्पर निरपेक्ष उभयपक्षमें तो सामान्य और विशेष दोनों पक्षोंमें आनेवाले दूषणोंका प्रसंग होगा। अनुभयरूप तो कोई पदार्थ ही नहीं हो सकता, या तो वह सामान्यरूप होगा या विशेषरूप । परस्पर व्यवच्छेदात्मक सामान्य और विशेष दोनोंका युगपत् निषेध नहीं किया जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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