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________________ गृह प्रकरणम् ( ७३) प्रासाद ( राजमहल या हवेली ) मठ और मंदिर ये बिना स्तंभ के नहीं करने चाहिये । कोने के बगल में अवश्य करके स्तंभ रखना चाहिये ॥१२६।। स्तंभ का नाप परिमाण मंजरी में कहा है कि "उच्छ्ये नवधा भक्ते कुंभिका भागतो भवेत् । स्तम्भः षड्भाग उच्छाये भागार्द्ध भरणं स्मृतम् ॥ शारं भागार्द्धतः प्रोक्तं पट्टोच्चभागसम्मितम्" ॥ घर की ऊंचाई का नौ भाग करना. उसमें से एक भाग के प्रमाण की 'कुंभी' बनाना, छः भाग जितनी स्तंभ की ऊंचाई करना, आधे भाग जितना उदयवाला 'भरणा' करना, आधे भाग जितना उदयवाला 'शरु' करना और एक भाग प्रमाण जितना उदय में 'पीढ़ा' बनाना चाहिये ।। कुंभी सिरम्मि सिहरं वट्टा टुंस-भगायारा। रूवगपल्लवसहिया गेहे थंभा न कायव्वा ॥ १३०॥ कुंभी के सिर पर शिखरवाला, गोल, आठ कोनेवाला, भद्रकाकार ( चढ़ते उतरते खांचेवाला ), रूपकवाला ( मूर्तियोंवाला) और पल्लववाला (पत्तियों वाला ) ऐसा स्तंभ सामान्य घर में नहीं करना चाहिये । किन्तु प्रासाद-देवमंदिर वा राजमहल में बनाया जाय तो अच्छा है ॥ १३०॥ खणमझे न कायव्वं कीलालयगोखमुक्खसममुहं । अंतरछत्तामंचं करिज खण तह य पीढसमं ॥ १३१ ॥ टी, आला और खिड़की इनमें से कोई खंड के मध्य भाग में आजाय इस प्रकार नहीं बनाना चाहिये । किन्तु खंड में अंतरपट और मंची बनाना और पीढे सम संख्या में बनाना चाहिये ॥ १३१ ।। गिहमज्झि अंगणे वा तिकोणयं पंचकोणयं जत्थ । तत्थ वसंतस्स पुणो न हवइ सुहरिद्धि कईयावि ॥ १३२ ॥ जिस घर के मध्य में या आंगन में त्रिकोण या पंचकोण भूमि हो उस घर में रहनेवाले को कभी भी सुख समृद्धि की प्राप्ति नहीं होती है ॥ १३२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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