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________________ गृह प्रकरणम् "गृहपृष्ठं समाश्रित्य वास्तुद्वारं यदा भवेत् । प्रत्यक्षायस्त्वसौ निन्द्यो वामावर्त्तप्रवेशवत् ॥" यदि मुख्य घर की दीवार घूमकर मुख्य घर के द्वार में प्रवेश होता हो तो 'प्रत्यक्ष' अर्थात् 'पृष्ठ भंग' प्रवेश कहा जाता है । ऐसे प्रवेशवाला घर हीनबाहु प्रवेश की तरह निंदनीय है। घर और दुकान कैसे बनाना चाहियेसगडमुहा वरगेहा कायव्वा तह य हट्ट वग्धमुहा । बाराउ गिहकमुच्चा हटुच्चा पुरउ मज्म समा ॥११३॥ . गाड़ी के अग्र भाग के समान घर हो तो अच्छा है, जैसे गाड़ी के आगे का हिस्सा सकड़ा और पीछे चौड़ा होता है, उसी प्रकार घर द्वार के आगे का भाग सकड़ा और पीछे चौड़ा बनाना चाहिये । तथा दुकान के आगे का भाग सिंह के मुख जैसे चौड़ा बनाना अच्छा है । घर के द्वार भाग से पीछे का भाग ऊंचा होना अच्छा है। तथा दुकान के आगे का भाग ऊंचा और मध्य में समान होना अच्छा है ॥११३॥ . द्वार के उदय ( ऊंचाई ) और विस्तार (चौड़ाई) का मान राजवल्लभ में इस प्रकार कहा है षष्ट्या वाथ शतार्द्धसप्ततियुतै-यासस्य हस्ताङ्गलैरिस्योदयको भवेच्च भवने मध्यः कनिष्ठोत्तमौ । दैार्द्धन च विस्तरः शशिकला-भागोधिकः शस्यते, दैर्ध्यात् त्र्यंशविहीनमर्द्धरहितं मध्यं कनिष्ठं क्रमात् ॥" घर की चौड़ाई जितने हाथ की हो, उतने ही अंगुल मानकर उसमें साठ अंगुल और मिला देना चाहिये । ये कुल मिलकर जितने अंगुल हो उतनी ही द्वार की ऊंचाई बनाना चाहिये, यह ऊंचाई मध्यम नाप की है । यदि उसी संख्या में पचास अंगुल मिला दिये जाय और उतने द्वार की ऊंचाई हो तो वह कनिष्ठ मान की ऊंचाई जानना चाहिये । यदि उसी संख्या में सत्तर ७० अंगुल मिला देने से जो संख्या होती है उतनी दरवाजे की ऊंचाई हो तो वह ज्येष्ठ मान का उदय जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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