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गृह प्रकरणम्
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हार विषयपुवाइ विजयबारं जमबारं दाहिणाइ नायव्वं । अवरेण मयरबारं कुबेरबारं उईचीए ॥१०॥ नामसमं फलमेसिं बारं न कयावि दाहिणे कुज्जा । जइहोइ कारणेणं ताउ चउदिसि अट्ट भाग कायव्वा ॥११०॥ सुहबार अंसमज्झे चउसुं पि दिसासु अठभागासु ।
चउ तिय दुन्निछ पण तिय पण तिय पुवाइ सुकम्मेण ॥१११॥ : पूर्व दिशा के द्वार को विजय द्वार, दक्षिण द्वार को यमद्वार, पश्चिम द्वार को मगर द्वार और उत्तर के द्वार को कुबेर द्वार कहते हैं । ये सब द्वार अपने नाम के अनुसार फल देनेवाले हैं। इसलिये दक्षिण दिशा में कभी भी द्वार नहीं बनाना चाहिये । कारणवश दक्षिण में द्वार बनाना ही पड़े तो मध्य भाग में नहीं बना कर नीचे बतलाये हुये भाग के अनुसार बनाना सुखदायक होता है। जैसे मकान बनाये जानेवाली भूमि की चारों दिशाओं में आठ २ भाग बनाना चाहिये । पीछे पूर्व दिशा के आठों भागों में से चौथे या तीसरे भाग में, दक्षिण दिशा के आठों भागों में से दूसरे या छठे भाग में, पश्चिम दिशा के आठों भागों में से तीसरें या पांचवें भाग में तथा उत्तर दिशा के आठों भागों में से तीसरे या पांचवें भाग में द्वार बनाना अच्छा होता है ॥१०६ से १११॥
बाराउ गिहपवेसं सोवाण करिज्ज सिटिमग्गेणं । * पयठाणं सुरमुहं जलकुंभ रसोइ श्रासनं ॥११२॥
द्वार से घर में जाने के लिये सृष्टिमार्ग से अर्थात् दाहिनी ओर से प्रवेश हो, उसी प्रकार सीढियें बनवाना चाहिये..."॥११२॥
समरांगण में शुभाशुभ गृहप्रवेश इस प्रकार कहा है कि__"उत्सङ्गो हीनबाहुश्च पूर्णबाहुस्तयापरः।
प्रत्यक्षायश्चतुर्थश्च निवेश: परिकीर्तितः ॥" * उत्तराई गाथा विद्वानों को विचारणीय है।
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