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________________ (४२) वास्तुलारे खरमायासदं वेश्म कान्ते च लभते श्रियम् । आयुरारोग्यमैश्वर्य तथा वित्तस्य सम्पदः ॥ मनोरमे मनस्तुष्टि-गृहभर्तुः प्रकीर्तिता । सुमुखे राजसन्मानं दुर्मुखे कलहः सदा ॥ क्रूरव्याधिभयं क्रूरे सुपक्षं गोत्रवृद्धिकृत् । धनदे हेमरत्नादि गाश्चैव लभते पुमान् ।। क्षयं सर्वक्षयं गेह-माक्रन्दं ज्ञातिमृत्युदम् । प्रारोग्यं विपुले ख्याति-विजये सर्वसम्पदः॥" ध्रुव नाम का प्रथम घर जयकारक है । धन्य नाम का घर धान्यवृद्धि कारक है जय नाम का घर शत्रु को जीतनेवाला है । नंद नाम का घर सब प्रकार की समृद्धि दायक है। खर नाम का घर क्लेश कारक है । कान्त नाम के घर में लक्ष्मी की प्राप्ति तथा आयुष, आरोग्य, ऐश्वर्य और सम्पदा की वृद्धि होती है । मनोरम नाम का घर घर के स्वामी के मन को संतुष्ट करता है । सुमुख नाम का घर राजसन्मान देने वाला है । दुर्मुख नाम का घर सदा क्लेशदायक है क्रूर नाम का घर भयंकर व्याधि और भय को करनेवाला है। सुपक्ष नाम का घर कुटुम्ब की वृद्धि करता है । धनद नाम के घर में सोना रत्न गौ इनकी प्राप्ति होती है । क्षय नाम का घर सब क्षय करनेवाला है। आनंद नाम का घर ज्ञातिजन की मृत्यु करनेवाला है। विपुल नाम का-घर आरोग्य और कीर्तिदायक है । विजय नाम का घर सब प्रकार की सम्पदा देनेवाला है। शान्तनादि चौसठ विशाल घरों के नाम संतण संतिद वड्ढमाणं कुक्कुडा सत्थियं च हंसं च । वद्धण कब्बुर संता हरिसणं विउला करालं च ॥७॥ वितं चित्तं धन्नं कालदंडं तहेव बंधुदं । पुत्तद सव्वंगा तह वीसइमं कालचक्कं ( च ) ॥७६॥ A 'संतद' इति पाठान्तरे। १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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