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गृह प्रकरणम्
(२६)
समरांगण सूत्रधार में कहा है कि
"शालाव्यासार्द्धतोऽलिन्दः सर्वेषामपि वेश्मनाम् ।" शाला के विस्तार से आधा अलिंद का विस्तार समस्त घरों में समझना चाहिये । गज ( हाथ ) का स्वरूपं
पव्वंगुलि चउवीसहिं छत्तीसिं करंगुलेहिं कविश्रा ।
अट्ठहिं जवमज्झेहिं पव्वंगुलु इक्कु जाणेह ॥४१॥ चौवीस पर्व अंगुलियों से या छत्तीस कर अंगुलियों से एक कंबिया ( गज-२४ इंच ) होता है । पाठ यवोदर से एक पर्व अंगुल होता है ॥ ४६ ॥
पासाय-रायमंदिर-तडाग-पायार-वत्थभूमी य । इन कंबीहिं गणिज्जह गिहसामिकरहिं गिहवत्थू ॥५०॥
देवमंदिर, राजमहल, तालाब, प्राकार (किला) और वस्त्र इनकी भूमि आदि का मान कंबिया ( गज) से करें । तथा सामान्य लोग अपने मकान का नाप अपने हाथ से करें ॥ ५० ॥
- अन्य समरांगण सूत्रधार आदि ग्रन्थों में गज तीन प्रकार के माने हैंआठ यवोदर का एक अंगुल, ऐसे चौवीस अंगुल का एक गज, यह ज्येष्ठ गज १ । सात यवोदर का एक अंगुल, ऐसे चौबीस अंगुल का एक गज, यह मध्यम गज २ । छह यवोदर का एक अंगुल, ऐसे चौबीस अंगुल का एक गज, यह कनिष्ठ गज ३ । इसमें तीन २ अंगुल पर एक २ पर्वरेखा करने से आठ पर्वरेखा होती हैं। चौथी पर्वरेखा पर आधा गज होता है। प्रत्येक पर्वरेखा पर फूल का चिन्ह करना चाहिये । गज के मध्य भाग से आगे की पांचवीं अंगुल का दो माग, आठवीं अंगुल का तीन भाग और बारहवीं अंगुल का चार भाग करना चाहिये । गज के नव देवता के नाम
"रुद्रो वायुर्विश्वकर्मा हुताशो, ब्रह्मा कालस्तोयपः सोमविष्णू ।"
गज के अग्र भाग का देवता रुद्र, प्रथम फूल का देव वायु, दूसरे फूल का देव विश्वकर्मा, तीसरे फूल का देव अग्नि, चौथे फूल का देव ब्रह्मा, पांचवें फल का
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