SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - (२१ ) वास्तुलारे मंगल, चंद्र और सूर्य पांचवें स्थान में, शुक्र छटे, सातवें या बारहवें स्थाने में, गुरु तीसरे स्थान में, शनि पांचवें या दसवें स्थान में हो तो विमध्यम फलदायक है। इनके सिवाय दूसरे स्थानों में सब ग्रह अधम हैं ।। ८६-८७ ।। प्रतिष्ठा में ग्रह स्थापना यंत्र वार उत्तम ____ मध्यम विमध्यम अधम १-२-४-७.८.६-१२ २.३-११ ८ १२ १.२-३-४.५.१०.११ १-२-४-७-८-६ १०-१२ ८-१२ ८.१२ १२-४-१-६-७-१०-११ १.४-५-६-१०-११ ३.६-११ १.२.४.७८.१-१२ २-४-५-८६-१०-१२ जिनदेव प्रतिष्ठा मुहूर्त्त बलवति सूर्यस्य सुते बलहीनेऽङ्गारके षुधे चैव । मेषवृषस्थे सूर्ये क्षपाकरे चाहती स्थाप्या ॥८॥ शनि बलवान् हो, मंगल और बुध बलहीन हों तथा मेष और वृष राशि में सूर्य और चन्द्रमा रहे हों तब अरिहंत (जिनदेव ) की प्रतिमा स्थापन करना चाहिये ॥ ८८॥ __महादेव प्रतिष्ठा मुहूर्त्त बलहीने त्रिदशगुरौ पलवति भौमे त्रिकोणसंस्थे वा । असुरगुरौ चायस्थे महेश्वरार्चा प्रतिष्ठाप्या ॥ ८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy