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(१०)
पास्तुसारे
उपन
५ | १० | १५ |३०|१५ १०५ कन्या कन्या कन्याला शिकशिक वृधिका
.
घरया प्रासादकरनेकी
भूमि
उत्तर
दक्षिण
घर की भूमि का प्रत्येक दिशा में सात २ भाग समान कीजे, इनमें क्रम से प्रथम मागमें पांच दिन, दूसरे में दश, तीसरे में पंद्रह, चौथे में तीस, पांचवें में वत्स चक्र
पंद्रह, हट्टे में दश और सातवें भाग में पांच दिन वत्स रहता है। इसी प्रकार दिन संख्या चारों ही दिशा में समझ लेना चाहिये और जिस अंक पर वत्स का शिर हो उसी के सामने का बराबर अंक पर वत्स की पूंछ रहती है इस प्रकार वत्स की स्थिति है।२०॥
पूर्व दिशा में खात आदि RA
का कार्य करना है उसमें यदि सूर्य कन्या राशि का हो तो प्रथम पांच दिन तक प्रथम भाग में ही खात
आदि न करे, किन्तु और जगह अच्छा मुहूर्त देखकर कर सकते हैं। उसके आगे दश दिन तक दूसरे भाम को छोड़कर अन्य जगह उक्त कार्य कर सकते हैं। उसके आगे का पंद्रह दिन तीसरे भाग को छोड़कर काम करे। यदि तुला राशि का सूर्य हो तो पूरे तीस दिन मध्य भाग में द्वार आदि का शुभ काम नहीं करे। वृश्चिक राशि के सूर्य का प्रथम पंद्रह दिन पांचवां भाग को, आगे का दश दिन छहा भाग को और अन्तिम पांच दिन सातवां भाग को छोड़कर अन्य जगह कार्य कर सकते हैं। इसी प्रकार चारों ही दिशा के भाग की दिन संख्या समझ लेना चाहिये।
थुन निघुन मधुन
१५ धनधन मकर ऊंभाऊंभ
३०१५-१६
वत्सफल
अग्गिमयो पाउहरो धणक्खयं कुणइ पच्छिमो वच्छो । वामो य दाहिणो विय सुहावहो हवइ नायव्वो ॥ २१ ॥
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