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प्रतिष्ठादिक के मुहूर्त्त ।
( १८३ )
शतभिषा, पुष्य, धनिष्ठा, मृगशीर, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, चित्रा, अनुराधा और रेवती इन नक्षत्रों में, शुभवारों में, चन्द्रमा, गुरु और शुक्र के उदय में प्रतिमा का प्रवेश कराना अच्छा है ।। २१
जिनबिम्ब करानेवाले धनिक के अनुकूल प्रतिमा स्थापन करते समय नक्षत्र, योनि आदि देखे जाते हैं । कहा है कि
योनिगणराशिभेदा लभ्यं वर्गश्च नाडीवेधश्च । नूतन बिंबविधाने षड्विधमेतद् विलोक्यं ज्ञेः ॥ २२ योनि, गण, राशिभेद, लेनदेन, वर्ग और नाडिवेध ये छ: प्रकार के बल पंडितों को नवीन जिनबिम्ब करवाते समय देखने चाहिये ॥ २२ ॥
नक्षत्रों की योनि
उडूनां योन्योऽश्व-द्विप-पशु-भुजङ्गा-हि-शुनकौस्व-जा-माजरा खुइय-वृष-मह- व्याघ्र - महिषाः । तथा व्याघ्रे णै ण-श्व-कपि-नकुल इन्द्र-कपयो,
हरिर्वाजी दन्तावलरिपु - रज:- कुञ्जर इति ॥ २३ ॥
अश्विनी नक्षत्र की योनि अश्व, भरणी की हाथी, कृत्तिका की पशु (बकरा ) रोहिणी की सर्प, मृगशीर्ष की सर्प, आर्द्रा की श्वान, पुनर्वसु की बिलाव, पुष्य की बकरा, आश्लेषा की बिलाव, मघा की उंदर, पुर्वाफाल्गुनी की उंदुर, उत्तराफाल्गुनी की गौ, हस्त की महिष, चित्रा की बाघ, स्वाति की महिष, विशाखा की बाघ, अनुराधा की मृग, ज्येष्ठा की मृग, मूल की श्वान, पूर्वाषाढा की बानर, उत्तराषाढा की नकुल, अभिजित् की नकुल, श्रवण की वानर, धनिष्ठा की सिंह, शतभिषा की अश्व, पूर्वाभाद्रपदा की सिंह, उत्तराभाद्रपदा की बकरा और रेवती नक्षत्र की योनि हाथी है || २३ ||
१ अन्य ग्रंथों में गौ योनि लिखा है।
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