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( १८०)
वास्तुसारे • ग्रहों का स्वाभाविक मित्रबल
शत्रू मन्दसितौ समश्च शशिजो मित्राणि शेषा रवे..
स्तीक्ष्णांशुर्हिमरश्मिजश्च सुहृदौ शेषाः समाः शीतगोः । जीवेन्दूषणकराः कुजस्य सुहृदो ज्ञोऽरिः सितार्की समो,
मित्रे सूर्यसितो बुधस्य हिमगुः शत्रः समाश्चापरे ॥१४॥ सूरेः सौम्यसितावरी रविसुतो मध्योऽपरे स्वन्यथा,
सौम्यार्की सुहृदो समौ कुजगुरू शुक्रस्य शेषावरी । शुक्रज्ञौ सुहृदौ समः सुरगुरुः सौरस्य चान्येऽरयो, ___ ये प्रोक्ताः स्वत्रिकोणभादिषु पुनस्तेऽमी मया कीर्तिताः ॥१५॥
सूर्य के शनि और शुक्र शत्रु हैं, बुध समान है और चन्द्रमा, मंगल व बृहस्पति ये मित्र हैं । चन्द्रमा के सूर्य और बुध मित्र हैं तथा मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि ये समान हैं, शत्रु ग्रह कोई नहीं है। मंगल के सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति ये मित्र हैं, बुध शत्रु है और शुक्र व शनि समान हैं । बुध के सूर्य और शुक्र मित्र हैं, चन्द्रमा शत्रु है और मंगल, वृहस्पति व शनि ये समान स्वभाव वाले हैं। गुरु के बुध और शुक्र शत्रु हैं, शनि मध्यम है और सूर्य, चंद्रमा व मंगल मित्र हैं। शुक्र के बुध और शनि मित्र हैं, मंगल और गुरु समान और सूर्य व चंद्रमा शत्रु हैं। शनि के शुक्र और बुध मित्र हैं, बृहस्पति समान और सूर्य, चंद्रमा व मंगल शत्रु हैं। इत्यादिक जो अपने त्रिकोण भवन दि स्थान में कहे हैं, वे मैंने यहां उदाहरण रूप में बतलाये हैं ॥ १४॥१५॥
प्रह मैत्री चक्र
ग्रहा ।
। रवि
सोम
मंगल
बुध
गुरु
शुक्र
शनि
सू-चं.
मित्र वं मं० वृह सूर्य बुध
| सूर्य शुकः सू० चं० मं० बुध शनि
बुध शुक्र
बृह
सम
।
तुम
मं वृ० शु० श.
शुक्र शनि
म० बु० शनि
शनि मंगल बृह० बृहस्पति
शत्रु | शुक्र शनि
वुध
__चंद्र
बुध शुक्र | सूर्य चंद्र
सू००म०
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