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प्रतिष्ठादिक के मुहूर्त।
( १७६ )
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शुक्लपक्ष की एकम, दूज, पांचम, दसम,तेरस और पूनम तथा कृष्णपक्ष की एकम, दूज और पंचमी ये तिथि प्रतिष्ठा कार्य में शुभदायक मानी है ॥१०॥ वार शुद्धि
भाइच बुह बिहप्फह सणिवारा सुंदरा वयग्गहणे । विंबपइट्टाइ पुणो बिहफा सोम बुह मुक्का ॥ ११ ॥
रवि, बुध, बृहस्पति, और शनिवार ये व्रत ग्रहण करने में शुम माने हैं तथा बिम्ब प्रतिष्ठा में बृहस्पति, सोम, बुध और शुक्र वार शुभ माने हैं ॥११॥ रत्नमाला में कहा है कि
तेजस्विनी क्षेमकृदग्निदाह-विधायिनी स्यावरदा दृढा च ।
आनंदकृस्कल्पनिवासिनी च, सूर्यादिवारेषु भवेत् प्रतिष्ठा ॥ १२॥
रविवार को प्रतिष्ठा करने से प्रतिमा तेजस्वी अर्थात् प्रभावशाली होती है । सोमवार को प्रतिष्ठा करने से कुशल-मंगल करनेवाली, मंगलवार को अग्निदाह, बुधवार को मन वाञ्छित देनेवाली, गुरुवार को दृढ (स्थिर ), शुक्रवार को आनंद करनेवाली
और शनिवार को की हुई प्रतिष्ठा कल्प पर्यन्त अर्थात् चंद्र सूर्ये रहे वहां तक स्थिर रहने वाली होती है ।। १२॥ प्रहों का उच्चबल
अजवृषमृगाङ्गनाकुलीरा झषवणिजौ च दिवाकरादितुङ्गाः । दशशिखिमनुयुक् तिथीन्द्रियांशै स्त्रिनवकविंशतिभिश्च तेऽस्तनिषाः ॥१३॥
मेषराशि के प्रथम दश अंश रवि का परम उच्च स्थान, वृषराशि के प्रथम वीन अंश चन्द्रमा का परम उच्च स्थान, मकर के प्रथम अट्ठाईस अंश मंगल का, कन्या के पंद्रह अंश बुध का, कर्क के पांच अंश गुरु का, मीन के सत्ताईस अंश शुक्र का और तुला के प्रथम बीस अंश शनि का परम उच्च स्थान है। उक्त राशियों में कहे हुए ग्रह उच्च हैं और उक्त अंशों में परम उच्च हैं । ये ग्रह अपनी उच्च राशि से सातवीं राशि पर हों तो नीच राशि के माने जाते हैं । अर्थात् सूर्य मेषराशि का उच्च है इससे सातवीं राशि तुला का सूर्य हो तो नीच का माना जाता है । इसमें भी दस अंश तक परम नीच है। इसी प्रकार सब ग्रहों को समझिये ॥१३॥
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