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वास्तुसारे चेति । तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नां अङ्कुशां देवीं गौरवर्णी पद्मवाहनां चतुभुजां खड्गपाशयुक्तक्षिणकरां चर्मफलकाङ्कुशयुतवामहस्तां चेति ॥ १४ ॥
अनन्तजिन नाम के चौदहवें तीर्थंकर हैं, उनके शरीर का वर्ण सुवर्ण रंग का है, श्येन (बाज) पक्षी के लाञ्छनवाले, जन्म नक्षत्र स्वाति और तुला राशि वाले हैं ।
उनके तीर्थ में 'पाताल' नाम का यक्ष, तीन मुखवाला, लाल वणेवाला, मगर के वाहनवाला, छ: भुजावाला, दाहिनी तीन भुजाओं में कमल, खड्ग और पाश; बायीं तीन भुजाओं में न्यौला, ढाल और माला को धारण करनेवाला है।
___ उन्हीं के तीर्थ में 'अंकुशा' नाम की देवी गौर वर्णवाली, कमल के वाहन वाली, ' चार भुजावाली, दाहिनी दो भुजाओं में खड्ग और पाश; बाँयें दो भुजाओं में ढाल और अंकुश को धारण करनेवाली है ॥ १४ ॥ पन्द्रहवें धर्मनाथजिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप
तथा पञ्चदशं धर्मजिनं कनकवर्ण वज्रलाञ्छनं पुष्योत्पन्नं कर्कराशिं चेति । तत्तीर्थोत्पन्नं किन्नरयक्षं त्रिमुखं रक्तवर्ण कूर्मवाहनं षडभुजं बीजपूरकगदाभययुक्तदक्षिणपाणिं नकुलपद्माक्षमालायुक्तवामपाणिं चेति । तस्मिन्नेव तीर्थो समुत्पन्नां कन्दर्पा देवी गौरवर्णा मत्स्यवाहनां चतुर्भुजां उत्पलाङ्कुशयुक्तदक्षिणकरां पद्माभययुक्तवामहस्तां चेति ॥ १५ ॥
धर्मनाथजिन नाम के पन्द्रहवें तीर्थंकर हैं, ये सुवर्ण वर्णवाले, वन के लाञ्छनवाले जन्म नक्षत्र पुष्य और कर्क राशिवाले हैं।
उनके तीर्थ में 'किन्नर' नाम का यक्ष, तीन मुखवाला, लाल वर्णवाला, कछुए का वाहनवाल', छ: भुजावाला, दाहिनी भुजाओं में बीजोरा, गदा और अभय; बॉयीं हाथों में न्योला, कमल और माला को धारण करनेवाला है।
उन्हीं के तीर्थ में 'कंदर्पा' ( पन्नगा ) नाम की देवी, गौर वर्णवाली, मछली के वाहनवाली, चार भुजावाली, दाहिनी भुजाओं में कमल और अंकुशः बाँयाँ भुजाओं में पम और अभय को धारण करनेवाली है ॥ १५ ॥
१-चतु. वि. जि. चरित्र में दाहिने हाथ में दाल और बायें हाथ में अंकुश, इस प्रकार दो हाथवाली माना है।
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