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जिनेश्वर देव और उनके शासन देवों का स्वरूप
( १५५ )
उनके तीर्थ में 'प्रचण्ड' (प्रवरा ) नाम की देवी कृष्ण वर्णवाली, घोड़े पर सवारी करने वाली, चार भुजावाली, दाहिनी दो भुजाओं में वरदान और शक्ति; बाँयीं दो भुजाओं में पुष्प और गदा को धारण करनेवाली है ॥ १२ ॥
तेरहवें विमल जिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप
नकुलचक्र
तथा त्रयोदशं विमलनाथ कनकवर्ण वराहलाञ्छनं उत्तर भाद्रपदाजातं मीनराशि चेति । तत्तीर्थोत्पन्नं षण्मुखं यक्षं श्वेतवर्ण शिखिवाहनं द्वादशभुजं फलचक्रबाणखङ्गपाशात सूत्रयुक्त दक्षिणपाणिं, धनुः फलकाङ्कुशाभययुक्त वामपाणि चेति । तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नां विदितां देवीं हरितालवर्णा' पद्मारूढां चतुर्भुजां बाणपाशयुक्त दक्षिणपाणिं धनुर्नागयुक्तवामपाणिं चेति ॥ १३ ॥
विमलजिन नाम के तेरहवें तीर्थंकर सुवर्ण वर्णवाले हैं, सूअर के लांछनवाले हैं, जन्म नक्षत्र उत्तराभाद्रपदा और मीन राशि है ।
उनके तीर्थ में ' मुख' नाम का यक्ष सफेद वर्ण का, मयूर की सवारी करनेवाला, बारह भुजावाला, दाहिनी छः भुजाओं में 'फल, चक्र, बाण, खड्ग, पाश और माला बाँयीं छः भुजाओं में न्यौला, चक्र, धनुष, ढाल, अंकुश और अभय को धारण करनेवाला है ।
उनके तीर्थ में 'विदिता' ( विजया ) नाम की देवी हरताल के वर्णवाली, कमल के आसनवाली, चार भुजावाली, दाहिनी दो भुजाओं में बाण और पाश तथा दो भुजाओं में धनुष और सांप को धारण करनेवाली है ॥ १३ ॥ चौदहवें अनन्तजिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप
तथा चतुर्दशं अनन्तं जिनं हेमवर्ण श्येनलाञ्छनं स्वाति नक्षत्रोत्पन्नं तुलाराशिं चेति । ततीर्थोत्पन्नं पातालयक्षं त्रिमुखं रक्तवर्ण मकरवाहनं षड्भुजं पद्मखड्गपाशयुक्तदक्षिणपाणिं नकुलफलकाच सूत्रयुक्तवामपाणिं १] दे० ला० सूरत में च० विं० जि० स्तुति में यहां भी फल के ठिकाने ढाल दिया है, उसको
भूल है ।
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