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________________ बाजारा ३भाग: प्रासाद प्रकरणम् कलश के उदय का प्रमाण प्रासादमंडन में कहा है कि "ग्रीवापीठं भवेद् भागं त्रिभागेनाण्डकं तथा। ____कर्णिका भागतुल्येन त्रिमागं बीजपूरकम् ।।" कलश का स्वरूप कलश का गला और पीठ का उदय एक २ भाग, अंडक अर्थात् Searn कलश के मध्य भाग का उदय तीन भाग, कर्णिका का उदय एक भाग और बीजोरा का उदय तीन भाग । एवं कुल नव भाग कलश के उदय के हैं। प्रक्षालन आदि के जल निकलने की नाली का मान जलनालियाउ फरिसं करंतरे चउ जवा कमेणुचं । जगई अ भित्तिउदए छज्जइ समचउदिसेहिं पि ॥ ५४॥ एक हाथ के विस्तारवाले प्रासाद में जल निकलने की नाली का उदय चार जव करना। पीछे प्रत्येक हाथ चार २ जव उदय में बढाना । जगती के उदय में और दीवार (मंडोवर) के छज्जे के ऊपर चारों दिशा में जलनालिका करना चाहिये ।। ५४ ॥ प्रासादमंडन में कहा है कि ___ "मंडपे ये स्थिता देवा-स्तेषां वामे च दक्षिणे । . : प्रणालं कारयेद् धीमान् जगत्यां चतुरो दिशः ॥" मंडप में जो देव प्रतिष्ठित हों उनके प्रक्षालन का पानी जाने की नाली बाँयी और दक्षिण ये दो दिशा में बनावें, तथा जगती की चारों दिशा में नाली करें । कौन २ वस्तु समसूत्र में रखना पाइपट्टस्स हिटं छज्जइ हिडं च सव्वसुत्तेगं । उदुंबर सम कुंभि अ थंभ समा थंभ जाणेह ॥ ५५ ॥ . पाट के नीचे और छज्जा के नीचे सब समसूत्र में रखना चाहिये । देहली के बराबर सब कुंभी और स्तंभ के बराबर सब स्तंभ करना चाहिये ।। ५५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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