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प्रासाद प्रकरणम्
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( १०५) प्रासाद के पीठ का मान
पासायाश्रो श्रद्धं तिहाय पायं च पीढ-उदओ अ। तस्सद्धि निग्गमो होइ उववीटु जहिच्छमाणं तु ॥ ३॥
प्रासाद से आधा, तीसरा या चौथा भाग पीठ का उदय होता है। उदय से आधा पीठ का निर्गम होता है। उपपीठ का प्रमाण अपनी इच्छानुसार करना चाहिये ॥ ३ ॥ पीठ के थरों का स्वरूप
अड्डथरं' फुल्लिअओ जाडमुहो कणउ तह य कयवाली। - गय-अस्स-सीह-नर-हंस-पंचथरइं भवे पीठं ॥ ४ ॥ इति पीठः ॥
अड्डथर, पुष्पकंठ, जाड्यमुख ( जाड्यंबो), कणी और केवाल ये पांच थर सामान्य पीठ में अवश्य होते हैं। इनके ऊपर गजथर, अश्वथर सिंहथर, नरथर, और हंसथर इन पांच थरों में से सब या न्यूनाधिक यथाशक्ति बनाना चाहिये । सामान्य पीठ का स्वरूपPYAARTHPRADABAATRADIOMPARISHAD ग्रारम्प
केवाल
अन्तरमन
जाइमभ।
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, 'भथरं' इति पाठान्सरे।
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