________________
परिशिष्ट
विधिहेतव : भावेन विधिहेतवः (अविरुद्धोपलब्धेः साधनानि) स्वभावादयोऽत्र ग्रन्थे सन्ति निर्दिष्टाः। भावेन विधिहेतौ अविरुद्धस्य व्यापकस्योपलब्धिः साधनं न हि भवति। अस्त्यत्र वृक्षत्वं निम्बादिति, अस्त्यत्र निम्बत्वं वृक्षादिति न निर्णायकता, वृक्षत्वेन निम्बवदाम्रस्यापि ग्रहणात्। भाव से विधिहेतु-(अविरुद्धोपलब्धि के साधन)। स्वभाव आदि हेतु मूलग्रन्थ में ही निर्दिष्ट हैं।
भाव से विधि-हेतु में अविरुद्ध व्यापक की उपलब्धि साधन या हेतु नहीं बन सकती। यहां वृक्षत्व है क्योंकि नीम है इस वाक्य में जो निर्णायकता है वह यहां नीम है, क्योंकि वृक्ष है इस वाक्य में नहीं है। क्योंकि वृक्षत्व के द्वारा नीम की तरह आम का भी ग्रहण हो सकता है। न्या. प्र. - अस्यायंभावः – साध्यं व्यापकं भवति । साधनञ्च व्याप्यमिति स्थितिः। अल्पदेशवृत्तिना साधनेन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org