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________________ प्रशस्तिश्लोकाः २०१ 7. अथ पञ्चममघराजगणी, जिनदर्शनमुकुटाग्रमणिः। माणिकलालडालचन्द्रौ, गणसंरक्षणनिस्तद्रौ॥ जीतमलमुनेरनन्तरं जिनदर्शनस्य मुकुटमणिरिव मघराजगणी तेरापंथधर्मसंघस्य पञ्चमाचार्य: सम्पन्नः । तदनु गणसंरक्षणनिस्तन्द्रौ गणपरम्परां मर्यादां च रक्षितुं बद्धपरिकरौ माणिकलालडालचन्द्रौ मुनिवरा आचार्यों बभूवतुः। ___ मुनि जीतमल जी के बाद जिनदर्शन के मुकुटमणि की भांति मघराजगणी पंचम आचार्य हुए। इनके बाद गण की मर्यादा की रक्षा के लिए कटिबद्ध मुनि माणिकलाल और मुनि डालचन्द्र छठे और सातवें आचार्य हुए। अथाष्टमाचार्यं परिचाययति- " 8. छौगेयोऽष्टमपट्टपतिः, कालुः करुणाब्धिः सुकृतिः। यदनुग्रहतोऽस्मादृगिति, ग्रन्थग्रथने प्रथितमतिः॥ छोगाया अपत्यं छोगेयः कालुगणी अष्टम आचार्य: सम्पन्नः । सुकृतिरयं महाभागः करुणासागर इवावतिष्ठत यस्यानुग्रहत: कृपाप्रसादतो मादृशोऽपि जनो ग्रन्थग्रथने ग्रन्थनिर्माणे प्रथितमतिरजायत। छौगेय (छोगा के पुत्र) कालुगणी इस सम्प्रदाय के आठवें आचार्य हुए। आचार्य तुलसी कहते हैं कि आचार्य कालुगणी करुणा के सागर थे, वे सुकृति पुरुष थे। उनके अनुग्रह से ही मेरे जैसा व्यक्ति ग्रन्थ निर्माण हेतु प्रथितमति-मतिमान् हो सका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002672
Book TitleBhikshunyayakarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages286
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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