SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० भिक्षुन्यायकर्णिका कृतमरुस्थलवीरभूमिरस्ति। अनेन महानुभावेन स्वकीयवैशिष्ट्यद्वारा मरुस्थलीया वीरभूमिः स्फुटीकृता-परां प्रसिद्धिं गमितेति भावः । एतादृशो महापुरुषः कैर्नावगम्यते? कैरविदितोऽस्ति? न केनापीति तात्पर्यम्। विक्रम संवत् १८१७ में व्रतियों में श्रेष्ठ तथा मरुस्थल की वीरभूमि की श्रेष्ठता के संवाहक भिक्षु स्वामी ने जिनमतानुसारिणी दीक्षा ली। उन आचार्य भिक्षु को कौन नहीं जानता है। सम्प्रति तेरापन्थस्याचार्यपरम्परां निरूपयति 6. भारमलो विमलोऽस्य पदे, तदनु च रायेन्दुर्मुमुदे। जीतमलस्तूर्यो जज्ञे, तत्तुलना स्यात् सर्वज्ञे॥ अस्य भिक्षुस्वामिनोऽनन्तरं तस्य स्थाने विगतमलो निर्मलो भारमलो मुनिः प्रतिष्ठितः। तदनन्तरं तत्स्थानं रायचन्द्रो मुनिः समलंचकार । तूर्य: चतुर्थ आचार्य मुनिर्जीतमलजी जातः । ज्ञानगरिम्णा तपश्चर्यया च स सर्वज्ञसमः आसीत्। भिक्षुस्वामी के बाद निष्कल्मष मुनि भारमल उनके स्थान पर आचार्य बने। उसके बाद मुनि रायचन्द्र जी आचार्य पदासीन हुए। मुनि जीतमल चौथे आचार्य हुए। ज्ञानगाम्भीर्य तथा तपोनिष्ठा के आधार पर इनकी तुलना सर्वज्ञ से की जाती है। आचार्यपरम्परामेव सूचयति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002672
Book TitleBhikshunyayakarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages286
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy