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________________ १३६ भिक्षुन्यायकर्णिका 4. इदानीं द्रव्यार्थिकं नयं विभजन् सूत्रयति - 3. नैगमः संग्रहो व्यवहारश्चेति त्रिधा द्रव्यार्थिकः। द्रव्यार्थिक नय के तीन प्रकार हैं :- 1. नैगम, 2. संग्रह, 3. व्यवहार। न्या. प्र.- नैगमः संग्रह: व्यवहारश्चेति त्रिप्रकारको द्रव्यार्थिक नयः। सम्प्रति नैगमं लक्षयति सूत्रद्वारा - भेदाभेदग्राही नैगमः। अभेद: सामान्यम्-द्रव्यं धर्मी वा। भेदः विशेष:- पर्यायो धर्मो वा। एतदुभयग्राही अभिप्रायो नैगमः। सामान्यविशेषयोर्नास्ति सर्वथा भेदः, यथा-निर्विशेषं न सामान्यम्, विशेषोऽपि न तत् विना ।।। केवलं तयोः प्राधान्याऽप्राधान्येन निरूपणं भवतीति विचाराय अस्य वृत्तिः, यथा-सुखी जीवः, जीवे सुखम्। भेद और अभेद दोनों का ग्रहण करने वाले नय को नैगम नय कहा जाता है। अभेद अर्थात् सामान्य-द्रव्य या धर्मी सामान्य होते हैं। भेद अर्थात् विशेष- पर्याय या धर्म विशेष होते हैं। इन दोनों का ग्रहण करने वाला अभिप्राय नैगमनय है। 1. निगम: देश संकल्प उपचारो वा तत्र भवो नैगमः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002672
Book TitleBhikshunyayakarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages286
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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