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________________ ९० दृष्टान्तो द्विविध इति प्रतिपादयन्नाह 22. अन्वयी व्यतिरेकी च । दृष्टान्त के दो प्रकार है : अन्वयी दृष्टान्त । 1. 2. व्यतिरेकी दृष्टान्त I न्या. प्र. व्यतिरेकी दृष्टान्तश्च । स्फुटमेतत् । कोऽन्वयी दृष्टान्तः इति लक्षयति ― दृष्टान्तो द्विविधो भवति — अन्वयी दृष्टान्तो 23. साध्यव्याप्तसाधननिरूपणमन्वयी । भिक्षुन्यायकर्णिका ( अनित्यः शब्दः कृतकत्वाद् इति हेतौ ) यद्यत्कृतकं तत्तदनित्यम्, यथा- घटः । साध्य में व्याप्त साधन का निरूपण करने वाला दृष्टान्त 'अन्वयी दृष्टान्त' कहलाता है। Jain Education International ( शब्द अनित्य है, क्योंकि वह कृतक है। ऐसा हेतु उपस्थित किए जाने पर) जो-जो कृतक है, वह वह अनित्य है, जैसे-घड़ा। न्या. प्र. - साध्यस्य व्याप्तिर्यत्र गच्छति तस्य साधनस्य निरूपणमन्वयी दृष्टान्तः । यथा शब्दः अनित्यः कार्यत्वात् ( कृतकत्वात्) अत्र साध्यमनित्यत्वं, तस्य व्याप्तिर्गृह्यते For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002672
Book TitleBhikshunyayakarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages286
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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