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________________ आदर्श जीवन । सोचते कि, व्याख्यानमें कभी कभी अपूर्व बातें आ जाया करती हैं, जिनका स्पष्टीकरण गुरुजन व्याख्याके समय ही किया करते हैं । अस्तु । मालेरकोटलासे विहार कर आचार्यश्री रायकोट जगराँवा आदि स्थानोंमें होते हुए जीरा पधारे । एक मासकल्प वहीं विताया । वहाँसे विहारकर हरिकापत्तन-जहाँ विपासा ( व्यास ) और शतद्रु. ( सतलज ) का संगम होता हैनौका द्वारा पारकर पट्टी पधारे । श्रीसंघने बड़े उत्साहके साथ आचार्यश्रीका स्वागत किया । आचार्यश्री उन्हें उपदेशामृत पिला निहाल करने लगे। पट्टीके श्रीसंघने आचार्यश्रीसे सं० १९४८ का चौमासा वहीं करनेकी प्रार्थना की । आचार्यश्रीने श्रावकोंका उत्साह देख, क्षेत्रको उत्तम समझ, व्यवहारतया यह कहकर उनकी विनती स्वीकार ली कि, यदि ज्ञानीने क्षेत्रस्पर्शना देखी होगी तो समय पर विचार कर लिया जायगा। पट्टीमें उत्तमचंद्रजी नामके एक वृद्ध विद्वान पंडित रहते थे । आचार्यश्रीकी आज्ञा पाकर आपने उनके पास पढ़ना प्रारंभ किया। पहले आपने चंद्रिकाके कठिन कठिन स्थलोंका स्पष्टीकरण कराया । उनकी विवेचन शैलीने आपको इतना आकर्षित किया कि आपने चंद्रिकाकी पुनरावृत्ति करनी शुरू कर दी। पंडितजी चंद्रिका पढ़ानेमें एक अद्वितीय विद्वान थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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