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________________ आदर्श जीवन । ७७ चिन्तामणि नाममालाका भी बहुतसा भाग कर लिया । आचार्यश्रीके पास दशवकालिककी, श्रीहरिभद्रमुरिमहाराज विरचित बृहट्टीकाका और आचारप्रदीप शास्त्रका अभ्यास किया । उपाध्यायजी महाराज श्रीसमय सुंदरजी रचित दशवकालिककी लघु टीकाका अभ्यास आप पहले ही पालीसे दिल्ली जाते हुए मार्गमें भाईजी महाराजके पाससे कर चुके थे । चौमासेके व्याख्यानमें आचार्य महाराज विशेष आवश्यकमेंसे गणधरवाद और श्रीवासुपूज्यचरित्रका उपदेश फर्माते थे। उसको भी आप धारण करते जाते थे। आपमें गुरुगमता और प्रभावोत्पादक व्याख्यान देने का जो ढंग है वह आचार्यश्रीके निरंतर व्याख्यान-श्रवणका ही प्रभाव है। जबतक आचार्यश्री जीवित रहे और जब तक वे व्याख्यान देते रहे तबतक हमारे चरित्रनायकने कभी आचार्यश्रीके व्याख्यानोंका सुनना न छोड़ा । केवल दो चौमासोंमें आप आचार्यश्रीके व्याख्यान न सुन सके । एक बार आपका चौमासा पालीमें हुआ था तब, और दूसरी बार आपका चौमासा अंबालेमें हुआ था तब । ___ आजकल मुनिराज दीक्षा लेनेके पहले तक तो बड़े ध्यानसे व्याख्यान सुनते हैं। परन्तु दीक्षित हो जानेके बाद वे गुरु जनोंके व्याख्यान सुनना छोड़ देते हैं। वे सोचते हैं अब तो हम खुद ही उपदेशदाता हो गये हैं। अब हमें गुरुजनोंके व्याख्यान सुनने की क्या आवश्यकता है ? मगर वे यह नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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