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________________ ( २२९ ) ३ - इनके पिता सेठ अमरचंद्रजी अपने छोटे लड़के सवचंदका व्याह जैनविधि से करना चाहते थे । उन्होंने जैन पंडितको बुला लिया था और जातिको जिमानेके लिए सब भोजन- मिठाई वगैरा बनवा चुके थे । ठीक मौकेपर जातिके पंचोंने कहलाया कि अगर तुम जैनविधिसे ब्याह करोगे तो जाति तुम्हारे यहाँ जीमने नहीं आयगी । सेठ अमरचंद्रजीने जातिकी आज्ञाको विवश स्वीकार किया; परन्तु युवक हेमचंद्रजीका अन्तःकरण असंतुष्ट हो उठा । उनके अन्तरात्माने कहा, " धर्मविहित कार्य करना मनुष्यका कर्त्तव्य है । पंचोंका उसमें दखल देना अन्याय है | अन्यायके आगे सिर न झुकाना ही मनुष्यता है । " यद्यपि उस समय वे कुछ न बोले, तथापि पंचोंके इस अन्यायको वे न भूले । दैवयोगसे प्राप्त उस समयका उन्होंने सदुपयोग कर जातिमें, जैनविवाहविधि चलानेका संकल्प कर लिया । शहरमेंसे अनेक लड़कियोंके पिता अपनी कन्याएँ इन्हें देने को तत्पर हुए; मगर वे जैनविधिसे ब्याह कर पंचोंकी नाराजगी न उठा सकनेसे चुप हो रहे | आखिर ' सरधार ' गाँवमें- जो राजकोटके पास है - इनका व्याह जैनविधिसे हुआ । पत्नीका नाम मंगला बेन था। उनसे दो पुत्र हुए । एकका नाम प्रवीणचंद्र है ओर दूसरेका अनिलकान्त | जैनविधिसे ब्याह होने के कारण माँगरोलके दसा श्रीमालियोंमें बड़ी हलचल मची। पंच इकट्ठे हुए और उन्होंने श्रीयुत हेमचंद्र और उनके कुटुंबियों को जाति बाहिर कर दिया। इतना ही नहीं दशा श्रीमालियोंके मांगरोलके श्वेतांबर श्रीसंघने भी इनको संघ बाहिर कर दिया । अपराध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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