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________________ (२२६) ठीक नहीं थी, लालाजीने उनसे पूछा था:-" भगवन् आप हमें किसके भरोसे छोड़ जाते हैं ? " महाराज साहिबने फर्माया थाः-८ मैं तुम्हें ' वल्लभ ' के भरोसे छोड़ जाता हूँ।” तभीसे वे वेल्लभविजयजी महाराजपर असीम श्रद्धा रखने लगे। आत्मारामजी महाराजके बाद विजयवल्लभसूरिजी महाराज पर उनको जितनी श्रद्धा 'रही उतनी और किसीपर न रही। __ लालाजी जब सन् १९२४ में बंबई आये थे तब उनसे हमारी भेट हुई थी। बड़े ही मिलनसार, शान्त प्रकृति, सरल स्वभावी और निरभिमानी पुरुष थे । बातों ही बातोंमें उन्होंने कहा था,-" मेरे जीवनकी एक साध अबतक पूरी नहीं हुई । वह साध है वल्लभविजयजी महारानको गुरुगद्दीपर स्थापित करना ।" ___मैंने उनसे कहा थाः- लालाजी ! आप कोई पत्र क्यों नहीं निकलवाते ? गुरुदयालके नामका एक पत्र जरूर होना चाहिये ।" उन्होंने कहा था:-" आत्मानंद जैन सभावाले अगर प्रेस खरीद कर पत्र निकालनेको राजी हों तो एक हजार रुपये मैं देनेको तैयार हूँ।" न जाने क्यों आत्मानंद सभा अंबाला इस ओर ध्यान नहीं देती ? __ जिस समय वल्लभविजयजी महाराजको आचार्य पदवी दे कर पंजाबने गुरुगद्दी पर स्थापित किया उस समय लालाजीको कितनी खुशी हुई होगी उसका अंदाजा लगाना हमारी शक्तिके बाहिर है। । उनका स्वर्गवास सं०. १९८२ के असाढ़ वदी १४ के दिन लुधियानेमें हुआ। जब वे स्वर्गवासी हो चुके तब अंबालेसे उनके पुत्र लाला बनारसीदासजी और दूसरे प्रतिष्ठित सज्जन मोटरें लेकर लालाजीके शवको अंबाले लेजानेके लिए लुधियाने गये।लुधियानेवालोंने लालाजीको भेजनेसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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