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________________ ( २२५ ) लालाजी बीमारीमेंसे उठे थे, तो भी दो माइल तक ये नंगे पैर घरघर नदी तक उनके सामने श्रीसंघके साथ गये थे। पन्यासजी महाराजने कहा :- " लालाजी ! आपकी तबीअत खराब है और आप नंगे पैर क्यों चले आ रहे हैं ? "" ये बोले :- " गुरुदयाल ! तिर्यंचगतिमें न जाने कितनी बार भटक आया ? उस समय पैर में पहननेको क्या था ? गुरुदयाल के साथ जितना समय निकले उतना ही शुभ है । आप हजारों माइल नंगे पैर चलते हैं । हम क्या इतनेमें मर जायँगे ? ” ये जैसे धर्मप्रेमी थे वैसे ही विद्याप्रेमी भी थे। अंबालेके आत्मानंद जैन विद्यालयमें इन्होंने एक खासी रकम दी थी । इतना ही नहीं अपनी वृद्धावस्था में भी, विद्यालयके लिए चंदा जमा करनेके लिए अम्बालेसे एक डेप्युटेशन बंबई आया था उसके साथ ये आये थे । आत्मानंद जैन सभा अंबालेके जब तक ये जीवित रहे पेटरन रहे थे। सारे पंजाबका जैन संघ इनकी बातको मानता था और एक मुरब्बीकी तरह इनकी इज्जत करता था और करता है । इनके घरमें कभी कंदमूल नहीं खाया जाता है । इनके पुत्र लाला बनारसीदासजीने तो कंदमूल चक्खे तक नहीं हैं ! पंजाबकी प्यारी वस्तु आलू तक बनारसीदासजीने नहीं चक्खे । अपने समाज में जैसी इज्जत थी वैसी ही इज्जत इनकी अन्य समाजोंमें भी थी । स्वर्गीय आत्मारामजी महाराजके ये अनन्य भक्त थे। उनके कथनको ये प्रभु आज्ञाकी तरह मानते थे । जब महाराज साहिबकी तबीअत १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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