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________________ आदर्श जीवन। जहाँ जहाँ सत्रोंके पाठ आते थे वहाँ वहाँ श्री सरिजी महाराज सूत्रोंके अध्याय और श्लोकों की संख्या लिख दिया करते थे। आप सूत्रोंमेंसे उनकी नकल कर लिया करते थे। इस काममें आपका बहुतसा समय चला जाता था, इसलिए आप वहाँपर व्याकरण विशेष रूपसे अध्ययन न कर सके; परन्तु गीतार्थ गुरु श्रीमूरिजी महाराजके चरणों में रहनेसे और उनकी आज्ञानुसार कार्य करनेसे सैधांतिक बहुतसा अपूर्व ज्ञान आपको प्राप्त हुआ। गुरुचरणोंमें रहनेका यही तो शुभ फल है । श्रीहरिभद्रमूरि महाराज पंचाशकजीमें फर्माते हैं नौणस्स होइ भागी, थिरयरओ दंसणे चरित्ते अ। धन्ना आव कहा जे गुरुकुलवासं न मुंचंति ॥ आपने इस उपदेशके अनुसार हमेशा आचरण किया। अर्थात् जबसे दीक्षित हुए तभीसे आप अपने गुरुमहाराज श्री १०८ श्री हर्षविजयजी महाराज और आचार्य महाराज श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद मूरिजी महाराजकी छत्रछायामें रहे और उनकी सेवा भक्तिपूर्वक करते रहे । इतना ही क्यों दीक्षा लेनेके पहलेहीसे आप गुरुभक्ति करते रहे । इसका फल यह हुआ कि, गुरुमहाराजने आपको ऊँचा उठाकर अपने बराबर बिठा लिया । अर्थात् आपको गुरुकृपासे और गुरु आज्ञासे सं० १९८१ में लाहोरमें आचार्य पदवी प्राप्त १ जो यावज्जीवन गुरुकुलवास नहीं छोड़ता है, वह ज्ञानका भागी होता है और उसके दर्शन तथा चारित्र स्थिरतर होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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