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________________ (१८१) ९ आई जबसे यहाँ पर फशीनें, धर्म और कर्म सब हम से छीनें। ___ चलती पुों में चरबी लगाकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ॥ १० इन मशीनों को भट्टी में डालो, खड्डी चरखे घरमें लगा लो। . ___ खुद बुनो सूत घर में कताकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ।। ११ हिन्दवाले भी खुशहाल होंगे, दूर बीमारी और काल होंगे। देखना फिरा जरा चश्म वा कर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ॥ १२ कोई कमजोर हिन्दी न होगा, कोई डरपोक हिन्दी न होगा । ___ खाएँगे दूसरों को खिलाकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ॥ १३ ये ही उपदेश देते मदामी, ताकि हो दूर सारी गुलामी । कह दिया जो कि शर्मा ने गाकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ।। –श्रीयुत भागमल शर्मा । (४) श्रीमद्गुरुवर्य-श्रीवल्लभविजय-स्तुत्यष्टकम् । (वल्लभविभक्त्यष्टकम् ।) उपजातिवृत्तम् । महागुरुश्रीमुनिसत्तमाऽऽत्मा-रामाभिधाचार्यपदाब्जभङ्गः । तद्वाक्सुधापानचकोरचेता, न “वल्लभः" कस्य स “वल्लभो" ऽस्ति॥१॥ तपःप्रकर्षण रिपञ्जयन्तं, गीर्भिनृचेतांस्यनुरञ्जयन्तम् । स्वधर्ममर्माणि निदर्शयन्तं, वन्देत को नो "मुनिवल्लभं" तम् ॥ २ ॥ संसारसिन्धोर्यदि ते तितीर्षा मुक्तिश्रियाँ चापि मुदां दिधीर्षा । तदाऽमुना लोचनवल्लभेन, वाचः शृणक्ता "मुनिवल्लभेन" ॥ ३ ॥ जैनागाम्भोनिधिमन्थनाय, स्फुटीकृतज्ञानमहापथाय । १ मुक्तिश्रियां चापि मुदा दिधीर्षा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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