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( १७८ )
पंछी नहीं पिंजरेमें पाऊँ । दर्शन आसा धाया ॥ बैल नहीं जे रसड़ी बाँधू । टकता नहीं टकाया ॥ ९ ॥ जोगी नहीं जे जोगमें जोडूं । भुलदा नहीं भुलाया ॥ दर्शन चाहा चंचल चित्त वाटे । निशदिन दौड़ दुड़ाया॥ १० ॥ सर्व साथ संघ आप लै आवो । नैन चैन दर्शाया ॥ शशि सम शीत सदा क्रांति । भ्रांति पाप उड़ाया ॥ ११ ॥ अतिशय गरमी अतिशय सरदी । क्या पंजाब कि पाया ॥ बाज तेरे कौन इधर पधारे । करुणा निध तु जाया ॥ १२ ॥ आवो देश पंजाब पधारो । रहे तेरी साया ॥ संजमवंत महन्त महामुनि । तुमरी मुझे सहाया ॥ १३ ॥ केशोंसे चरणन रज चाटू । नैन नीर दोन पाया ॥ कुंकुमचंदन नवअंग पूनँ । खुशी खुशी रंग रंगाया ॥ १४ ॥
-लाला खुशीराम ।
गुरु वल्लभकी बानी है अमृतभरी ! ॥ अंचली ॥ वल्लभविजय महाराज बसें दिलोजानमें । . उन्हीं गुरुका नाम धरूँ अपने ध्यानमें ॥ ऐसे गुरु महाराज हो सारे जहानमें । ___तारोंमें चाँद जिस तरह हो आस्मानमें ॥ मैं गुन गुरुके क्या कहूँ ? बरसाते हैं झड़ी ॥ गु० ॥१॥ चौकीपै गुरु जिस घड़ी सजते व्याख्यानमें । ..मानों शजर फूलोंके थे गुरुकी जबानमें ॥
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